मन के जीते जीत है ,मन के हारे हार
मन को समझा ना अगर जीना हो दुश्वार /
जीना हो दुश्वार अगर मन दुख से भारी
सुख से पल संवार, कर के मन संग यारी
मन से कर लो प्रीत ,छोड़ो मोह अब तन के
मन की ना हो हार ,प्यार के फेरो मनके //
..........मौलिक व अप्रकाशित ..............
Comment
आदरणीय राम भाई हार्दिक आभार ...सादर
आदरणीय गिरिराज जी आपके आशीर्वाद एवं स्नेह की आभारी हूँ ,सही कहा आपने यह ज्यादा अच्छा लग रहा है
आदरणीय ब्रिजेश जी हार्दिक आभार
आदरणीय नादिर खान जी हार्दिक आभार
आदरणीया सरिता जी , बहुत सुन्दर बात कुंडलिआ मे कही है आपने , आपको बधाई !! पाँचवी पंक्ति मे गेयता कहीं कम लग रही है ॥ मोह छोड़ो अब तन के , करके देखियेगा ॥
अच्छा प्रयास है! आपको हार्दिक बधाई!
शुक्रिया कुंती दीदी
बात एकदम सही है सरिता जी......मन की जीत सारे नाते रिश्तों की जीत......मन की जीत खुद की जीत...शुभकामनाएं
सुंदर कुंडलिया आदरणीय सरिता जी ...........
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