2122 2122 2122
आँख में उनकी छिपा डर देख लेते
जल गये जो आप वो घर देख लेते
कर दिया अंधा सियासत ने सहज ही
आप वरना खूँ के मंजर देख लेते
क्यों किसी के आसरे पर आप बैठे
कुछ नया खुद आजमाकर देख लेते
बात करते हो बहुत तुम न्याय की जब
हाकिमों नित क्यों कटे सर देख लेते
खूब सुनते है तेरी जादूगरी की
आग पानी से जलाकर देख लेते
सोच लेता मैं कि जन्नत पा गया हूँ
कमसिनों आगोश में भर देख लेते
आशिकी होती न तो हम आँख रखते
तब समय के हाथ पत्थर देख लेते
गर ‘मुसाफिर’ मुफलिसी में यार होता
आप भी तो आजमाकर देख लेते
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
क्यों किसी के आसरे पर आप बैठे
कुछ नया खुद आजमाकर देख लेत...........लाजवाबशेर
दिली दाद कुबूल कीजिये आदरणीय लक्ष्मण जी
आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत खूबसूरत गज़ल कही है , आपको दिली बधाइयाँ ॥ आदरणीय शिज्जू भाई की सलाह पर गौर ज़रूर करें , तीसरे और सातवें शे र मे तकाबुले रदीफ दोष है , ठीक कर लीजियेगा ॥
बहुत सुन्दर गजल कही है आपने एक दो शेर में रफीद को देख लीजिये शिज्जू जी ने आपको कह ही दिया है , बधाई आपको सुन्दर गजल हेतु
आदरणीय लक्ष्मण जी बेहतरीन ग़ज़ल है बहुत बहुत बधाई। बस 2 अशआर में तकाबुले रदीफ है ज़रा देख लेंगे
सादर,
बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल ....हार्दिक बधाई ... |
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