2122 2122 2122 2122
राह में अवरोध जितने, ओ! जमाने तूँ लगा ले
है मुहब्बत चीज ऐसी, रास्ता फिर भी बना ले
हर जुनूँ कमतर है इसको, आग इसकी कौन रोके
आशिकी पीछे हटी कब, इम्तहाँ गर जो खुदा ले
कैश की हर पीर लैला, खीच लेती ओर अपनी
है मुहब्बत को बहुत कम, जुल्म जग जितने बढ़ा ले
इस मुहब्बत की बदौलत, शिव फिरे ले शव सती का
अंध देखे रंग दुनिया, नेह में जब मन रमा ले
खत्म होता प्यार में कब, हसरतों का सिलसिला है
रूठते ही मन करे है, काश! आकर वो मना ले
है मुहब्बत सास तन की, है मुहब्बत आस मन की
तब मुसाफिर डर रहा क्यों, नेह तूँ भी मन जगा ले
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
आदरणीय भाई अनिल कुमार जी , ग़ज़ल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद .
खत्म होता प्यार में कब, हसरतों का सिलसिला है रूठते ही मन करे है, काश! आकर वो मना ले
है मुहब्बत सास तन की, है मुहब्बत आस मन की तब मुसाफिर डर रहा क्यों, नेह तूँ भी मन जगा ले.....................बहुत खूब आदरणीय!
आदरणीय भाई आशुतोष जी , आपकी बधाई तहेदिल से स्वीकार ली गयी है . उत्साहवर्धन के लिए आभार .
आदरणीय भाई गिरिराज जी , ग़ज़ल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद . आपका और वंदना जी का सुझाव सर आँखों पर . कई बार टंकण की चूक जल्दी से पकड़ में नहीं आती या ध्यान नहीं जा पाता. पर आगे से प्रयास रहेगा की इस तरह की गलती न हो . पुनः हार्दिक धन्यवाद .
आदरणीय वंदना जी ग़ज़ल कि प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद . साथ ही त्रुटियों की और ध्यान दिलाने के लिए भी धन्यवाद .
आदरणीय लक्ष्मण जी ..कमाल की ग़ज़ल कही है अपने ..इतिहास के पात्रों जोडती हुई मुहब्बत की सर्वोच्चत को इंगित करती इस शानदार ग़ज़ल के लिए तहे दिल बधाई अवीकर करें ..सादर
इस मुहब्बत की बदौलत, शिव फिरे ले शव सती का
अंध देखे रंग दुनिया, नेह में जब मन रमा ले --------- आदरणीय लक्ष्मण भाई , इस शे र के लिये और पूरी गज़ल के लिये बधाइयाँ ॥ आदरणीया वन्दना जी के कहे ध्यान दीजियेगा ॥
आदरणीय श्याम भाई ग़ज़ल की प्रशंसा के लिए आभार .
आदरणीय मीना बहन , उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद .
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