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ग़ज़ल- सारथी || इशारों से दिल का जलाना तेरा ||

इशारों से दिल का, जलाना तेरा

अजब! हुस्नवाले, बहाना तेरा /१ 

हमें क्या फ़िकर, ग़र जमाना कहे

दीवाना- दीवाना, दीवाना तेरा /२ 

हुआ जब से रिश्ता, हयाई बढ़ी

यूँ साड़ी पहन के, लजाना तेरा /३ 

अभी तो जवां हूँ, है गुंजाइशें

जिगर पे उठा लूँ, निशाना तेरा /४  

न नासाज कर दे, कहीं आपको

सनम सर्दियों में, नहाना तेरा /५  

बड़प्पन कहीं से, दिखे तो कहूँ

सुना तो, बड़ा है घराना तेरा /६ 

ये तेवर, ये अंदाज़, आसां नहीं

ग़ज़ल, 'सारथी' जी सुनाना तेरा /७ 

...............................................

अरकान: १२२१  २२१२  २१२

सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित 

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 5, 2014 at 12:58am

बड़प्पन कहीं से, दिखे तो कहूँ

सुना तो, बड़ा है घराना तेरा .. . .इस शेर पर बहुत सारा वज़्न है. 

कई शेर मोहक लगे हैं

इस कोशिश के लिए हार्दिक बधाई.. .

Comment by Saarthi Baidyanath on February 23, 2014 at 7:04pm

आदरणीय  Neeraj Kumar 'Neer' जी , नमन स्वीकार करें !..बहुत बहुत धन्यवाद ! स्नेह देते रहिएगा !

Comment by Saarthi Baidyanath on February 19, 2014 at 10:28am

जनाब  शिज्जु शकूर  साहब, आपकी इनायतों का शुक्रगुजार हूँ ! शुक्रिया बहुत बहुत ....!

Comment by Neeraj Neer on February 19, 2014 at 8:36am

बहुत  सुन्दर ग़ज़ल ..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on February 18, 2014 at 8:46pm

भाई सारथी जी अच्छी ग़ज़ल कही है आपने बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by Saarthi Baidyanath on February 18, 2014 at 11:43am

मान्यवर गिरिराज भंडारी जी , आप बिल्कुल वाजिब फरमा रहे हैं ..! मैं इसे अतिशीघ्र सुधार कर लूँगा ! आपके इस अमूल्य मार्गदर्शन हेतु कोटिशः आभार व नमन ! श्रीमान, दीवाना लिखने से ग़ज़ल मान्य तो होगा न ?  स्नेह देते रहिएगा ! विनीत !

Comment by Saarthi Baidyanath on February 18, 2014 at 11:42am

आदरणीय  laxman dhami साहब , दिली शुक्रगुजार हूँ जो नाचीज की ग़ज़ल पसंद आई ! सादर नमन सहित :)

Comment by Saarthi Baidyanath on February 18, 2014 at 11:39am

आदरणीय  ram shiromani pathak जी , बहुत मेहरबानी आपकी ! सादर अभिनन्दन आपका !

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 18, 2014 at 7:49am

आदरनीय भाई वैद्य नाथ जी, बहुत खूबसूरत गज़ल कही है, हार्दिक बधाइयाँ.  भाई गिरिराज जी की सलाह पर जरूर विचार करें .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 17, 2014 at 10:33pm

आदरनीय वैद्य नाथ भाई , बहुत खूबसूरत गज़ल कही है , सभी अशआर सुन्दर हैं ॥ आपको दिली बधाइयाँ ॥ बस दिवाना खटक रहा है , सही शब्द दीवाना है , और वो भी तीन बार  , थोड़ा सोच के देखियेगा ॥

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