For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अब हरियल नहीं देगी अंडे ..

इस कविता के पूर्व थोड़ी सी प्रस्तावना मैं आवश्यक समझता हूँ. झारखंड के चाईबासा में सारंडा का जंगल एशिया का सबसे बड़ा साल (सखुआ)  का जंगल है , बहुत घना . यहाँ पलाश के वृक्ष से जब पुष्प धरती पर गिरते हैं तो पूरी धरती सुन्दर लाल कालीन सी लगती है . इस सारंडा में लौह अयस्क का बहुत बड़ा भण्डार है , जिसका दोहन येन केन प्राकारेण करने की चेष्टा की जा रही है .. इसी सन्दर्भ में है मेरी यह कविता :

सारंडा के घने जंगलों में

जहाँ सूरज भी आता है

शरमाते हुए,

सखुआ वृक्ष के  घने पत्रों ,

लताओं में छुपता छुपाता. 

जहाँ प्रकृति बिछाती है टेसू, मानो

धरती पर बिछा हो  लाल कालीन

विशिष्ट आगत के स्वागत में.

वहीँ, बरगद के कटोर  में

हरियल ने दिए है

उम्मीद के अंडे .

कटोर  के अन्दर है हलचल

चूजे सीख रहे हैं पंख फडफडाना.

वे भी उड़ेंगे

नापेंगे गगन का विस्तार .

स्वतंत्रता की गुनगुनी धुप में

बेलौस उड़ने का

अपना ही आनंद है ..

लेकिन पड़ती है खलल,

एक दैत्याकार सूअर को

खानी है बरगद की जड़.

वह बनना चाहता है

और मोटा , और बड़ा

वह खोद डालता है बरगद की जड़ को

उलट देता है दरख्त.

जंगल के क़ानून में हरियल

हासिये पर है .

वह करता है प्रतिरोध,

अपने चूजों को

बचाने का असफल प्रयास.

लेकिन रहता है विफल.

उजड़े हुए दरख़्त के साथ ही

समाप्त हो जाती है

हरियल और उसके चूजों की

जीवन गाथा.

अंत होता है एक सभ्यता का.

पलाश के फूलों का रंग

पड़ गया है काला .

रक्त सुख कर

काला हो जाता है .

अब कोई हरियल

सारंडा में नहीं देगी अंडे ..

... नीरज कुमार नीर

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 690

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Neeraj Neer on March 5, 2014 at 9:06am

आपका हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी ... रचना के कथ्य एवं उसकी बुनावट से आपकी सहमति मुझे बहुत प्रोत्साहित कर रही है .. आपका अनेकानेक धन्यवाद . 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 5, 2014 at 2:49am

महुआ पलाश और सखुआ.. रह-रह कर बनपंछी की तीखी टेर.. सारंडा ज़िन्दा जंगल है. कबतक जी पायेगा यह ! ये उसकी उन्मुक्तता पर नहीं अब अघाये हुए उस सूअर की तृष्णा पर निर्भर है जो स्वार्थ की हवा सूँघ-जी आया है. 

आपने बिम्बों को बहुत खूबसूरती से सहेजा है, नीरज नीर भाईजी.  उस सघन वन की अशक्ता उसके कारण नहीं है. यह तथ्य पूरी गहराई से उभर आया है.

कहते हैं, कविता हमारे दर्द की भाषा में बात करती है. यहाँ दर्द भी है और उसका कारण भी है.

शुभ-शुभ

Comment by Neeraj Neer on February 24, 2014 at 10:31pm

आदरणीया डॉ प्राची सिंह साहिबा मेरे पोस्ट पर आपका आना अंततः इस रचना को सार्थक कर गया . बहुत शुक्रिया रचना के भाव के साथ जुड़ने के लिए एवं प्रोत्साहन देने के लिए .. पुनः धन्यवाद.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 24, 2014 at 9:17pm

माइनिंग प्रोजेक्ट्स कितने कितने जंगलों के कटान का कारण बनते हैं ..साथ ही वहां की वाइल्ड लाइफ भी तहस नहस हो जाती है..

जिस तरह गहन संवेदनशीलता के साथ आपने हरियल के अण्डों के ज़रिये आपने बायोडाईवर्सिटी पर एक आवश्यक सन्देश दिया है उसके लिए आपको मेरा ह्रदय से साधुवाद 

बहुत बहुत बधाई इस सार्थक प्रस्तुति पर 

Comment by Neeraj Neer on February 21, 2014 at 7:45pm
रचना की सराहना एवं उठाये गए विषय पर आपका समर्थन पाकर मैं अभिभूत हूँ.. आपका हार्दिक धन्यवाद आदरणीय आशुतोष मिश्र जी .
Comment by Neeraj Neer on February 21, 2014 at 7:45pm
रचना की सराहना एवं उठाये गए विषय पर आपका समर्थन पाकर मैं अभिभूत हूँ.. आपका हार्दिक धन्यवाद आदरणीय आशुतोष मिश्र जी .
Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 21, 2014 at 2:36pm

आदरणीय नीरज जी ..सुंदर प्रतीक के सुंदर उपयोग ने कव्यभिबक्ति में चार चाँद लगा दिए ..कविता के माध्यम से सार्थक सन्देश देने में भी आप सफल हुए है ..मेरी तरफ से तहे दिल बधाई के साथ ..सादर 

Comment by Neeraj Neer on February 20, 2014 at 7:32pm

शुक्रिया  आदरणीय गिरिराज भंडारी जी .. रचना के प्रति अपना समर्थन देने के लिए ह्रदय से शुक्र गुजार हूँ .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 20, 2014 at 5:13pm

आदरणीय नीरज भाई , सुन्दर सन्देश देती रचना के लिये बधाइयाँ ॥ अति शक्ति शाली के द्वारा हमेशा सामोहिक फायदे की सम्भावना को व्यक्ति गत लाभ के लिये उपभोग किया जाता रहा है , जिसका नुकसान आज नही तो कल सभी को भुगतना ही पड़ेगा ॥

Comment by Neeraj Neer on February 19, 2014 at 7:47pm

आदरणीय शिज्जू सकुर जी आपका हार्दिक आभार ..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"प्रस्तुति को आपने अनुमोदित किया, आपका हार्दिक आभार, आदरणीय रवि…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
Saturday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
Saturday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service