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बचपने में चाँद को रोटी समझना भूल थी
कमसिनी में एक कमसिन से लिपटना भूल थी
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तात ने डाटा किताबें पढ़, मुहब्बत में न पड़
तात से इस बात पर मेरा झगड़ना भूल थी
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कोख में जब मात ने पाला न माना कुछ उसे
इक कली के द्वार पर माथा रगड़ना भूल थी
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मिट गया वो, पात ने कर ली हवा से प्रीत जब
बेखुदी में डाल से उसका बिछड़ना भूल थी
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लूटता इज्जत भ्रमर नित दोष उसको कौन दे
कह रहे सब क्यों कली का यूं सवरना भूल थी
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मढ़ दिया है दोष सर पे राहमारी देखिए
राह से उसकी ‘मुसाफिर’ का गुजरना भूल थी
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
तात ने डाटा किताबें पढ़, मुहब्बत में न पड़
तात से इस बात पर मेरा झगड़ना भूल थी | क्या बात है !
बढ़िया ग़ज़ल भाई लक्ष्मण जी...
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