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कह मुकरियाँ - सरिता भाटिया

प्रथम प्रयास कह मुकरियाँ पर आप सब सुधीजनों के मार्गदर्शन की अभिलाषी हूँ ...

1.
लीला सखिओं संग रचाता
मन का हर कोना महकाता
भागे आगे पीछे दैया
क्यों सखि साजन ? ना कन्हैया
2.
जिसको हमने स्वयं बनाया
मान और सम्मान दिलाया
उसको हमारी ही दरकार
क्यों सखि साजन ? नहीं सरकार
3.
बच्चे बूढ़े सबको भाए
नाच दिखाए खूब हँसाए
सबके दिल का बना विजेता
क्यों सखि साजन ? ना अभिनेता
4.
उसके बिना चैन ना आए
पाकर उसको मन हर्षाए
उसको देख देख मुस्काती
क्यों सखि साजन ? ना सखि पाती
5.
बिगड़ी बातें सभी बनाता
नवजीवन की आस जगाता
करता सारे ह्रदय के काम
क्यों सखि साजन? ना सखि राम

..........................................
.......मौलिक व अप्रकाशित........

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Comment

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Comment by Sarita Bhatia on March 14, 2014 at 7:53pm

आदरणीय सौरभ sir शुक्र है आप आए तो प्रथम प्रयास में ही जब कोई आकर नहीं बताएगा तो कैसे गल्ती सुधार करेंगे 

आपकी हार्दिक आभारी हूँ कृपया जो इसके बाद लिखी गई हैं उनको भी सुधारने का मौका दें 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 14, 2014 at 3:27pm

जिसको हमने स्वयं बनाया
मान और सम्मान दिलाया .........  ऐसी कौन-सी सजनी होती है ? या ऐसी कितनी प्रतिशत सजनियाँ होती हैं ?

मुकरियों को तार्किक रखा जाय तो ही इनकी सार्थकता है. प्रयास हेतु हार्दिक बधाई

Comment by ram shiromani pathak on February 22, 2014 at 2:05pm

आदरणीया सरिता जी,सुंदर प्रस्तुति.................सादर

Comment by Sarita Bhatia on February 21, 2014 at 10:48am

आदरणीय गुरुदेव जी आपके सुझाव अनुसार कुछ और भी परिवर्तन कर दिए हैं ,मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार 

Comment by Sarita Bhatia on February 21, 2014 at 10:47am

आदरणीय गिरिराज जी हार्दिक आभार स्नेह बनाये रखें 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on February 20, 2014 at 9:16pm

आदरणीया , मनमोहक कह-मुकरियाँ , बधाइयाँ

सखिओं संग लीला रचाता ------इसे "लीला सखियों संग रचाता"  कह कर देखिये, प्रवाह स्मूथ लगेगा

हमने जिसे है खुद बनाया--------"जिसको हमने स्वयम् बनाया" , में अच्छा प्रवाह आयेगा

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 20, 2014 at 5:59pm

आदरणीया सरिता जी , कह मुकरियों के प्रभावी प्रयास के लिये आपको बधाइयाँ ॥

कृपया ध्यान दे...

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