बह्र : २१२२ १२१२ २२
झूठ में कोई दम नहीं होता
सत्य लेकिन हजम नहीं होता
अश्क बहना ही कम नहीं होता
दर्द, माँ की कसम नहीं होता
मैं अदम* से अगर न टकराता
आज खुद भी अदम नहीं होता
दर्द-ए-दिल की दवा जो रखते हैं
उनके दिल में रहम नहीं होता
शे’र में बात अपनी कह देते
आपका सर कलम नहीं होता
*अदम = शून्य, अदम गोंडवी
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
झूठ में कोई दम नहीं होता
सत्य लेकिन हजम नहीं होता............बहुत धारदार मतला
ग़ज़ल अच्छी लगी ..बहुत बहुत बधाई
वाह! बहुत सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!
भाई सुन्दर ग़ज़ल कही है , आपको हार्दिक बधाई///////
आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , अच्छी ग़ज़ल कही है , आपको हार्दिक बधाई ॥
मैं अदम* से अगर न टकराता
आज खुद भी अदम नहीं होता...........गजब गजब, बहुत कमाल का शेर
बहुत शानदार गजल कही आदरणीय धर्मेन्द्र जी, दिली दाद कुबूल कीजियेगा
आदरणीय भाई अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई .
क्या खूब कहा ---
मैं अदम* से अगर न टकराता
आज खुद भी अदम नहीं होता
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