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कुछ कह-मुकरियाँ ..............डॉ० प्राची

क़दमों में दे बहकी थिरकन

महकी नम सी चंचल सिहरन  

बाँहों भर ले, रच कर साजिश 

क्या सखि साजन? न सखि बारिश 

हर पल उसने साथ निभाया 

संग चले बन कर हम साया 

रंग रसिक नें उमर लजाई 

क्या सखि साजन? न सखि डाई

चाहे मीठे चाहे खारे 

राज़ पता हैं उसको सारे 

खोल न डाले राज़, हाय री ! 

क्या सखि साजन? न सखि डायरी 

उसने सारे बंध सँजोए

अंक समेटे प्रेम पिरोए 

ज़िंदा है यादों से हरदम 

क्या सखि साजन? न सखि एल्बम 

आँसू देखे, झट गल जाए 

रख लूँ उसको नयन बसाए 

रूप निखारे कंचन कंचन 

क्या सखि साजन? न सखि अंजन 

 

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on February 24, 2014 at 9:19pm

आदरणीया डॉ प्राची जी एक से बढ़कर एक कह मुकरियाँ ... मन भावन ...बधाई
भ्रमर ५


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 23, 2014 at 7:42pm

आ० डॉ० आशुतोष मिश्रा जी 

कह मुकरियाँ की प्रस्तुति आपको पसंद आयी यह जान बहुत खुशी हुई ...

सराहना के लिए सादर धन्यवाद 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 23, 2014 at 7:39pm

आ० अखिलेश श्रीवास्तव जी 

कहमुकरियाँ आपको पसंद आयीं यह जान अच्छा लगा ... लेकिन भाई जी ये विधा किसी भी तरह पहेली के समकक्ष नहीं... क्योंकि पहेली कभी उत्तर अपने में नहीं समेटे होती , साथ ही कह मुकरियाँ सिर्फ दो सखियों की बातचीत को अभिव्यक्त करती हैं जिसमें एक सहेली बद्ख़याली में (या अपनी ही धुन में ) अपने प्रिय के बारे में कुछ बता जाती है , और दूसरी सखि के पूछने पर मुकर जाती है...कि नहीं मैं तो किसी और चीज़ के बारे में बात कर रही थी.

और ये कह्मुकरियाँ यदि आप बच्चों के समूह में पहेली की तरह खेली जा सकने की विधा समझते हैं तो ये बहुत ही आश्चर्य जनक है क्योंकि निश्चय ही कह्मुकारियों की विषयवस्तु व प्रस्तुतीकरण का तरीका बच्चों के लिए तो नहीं ही है.

सादर.

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 23, 2014 at 7:23pm

आदरणीया प्राची जी ..आपके बैबिध्य पूर्ण साहित्य श्रजन के एक और पहलू से रूबरू होने का  मौका मिला ..बहुत ही शानदार कह्मुकरियाँ ..सभी एक से बढाकर एक .तहे दिल बधाई स्वीकर करें सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 23, 2014 at 12:21pm

आदरणीय मुख्य प्रबंधक महोदय 

कह मुकरी विधा पर यह प्रस्तुति आपको पसंद आयी और आपकी भरपूर सराहना मिली... यह अनुमोदन इस प्रयास के प्रति आश्वस्ति दे रहा है 

आपका हार्दिक धन्यवाद 

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 23, 2014 at 12:15pm

कह्मुकरियाँ आपको पसंद आयीं ,जान मुझे बहुत अच्छा लगा ...सादर धन्यवाद आदरणीया राजेश कुमारी जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 23, 2014 at 12:14pm

कहमुकरियों तक दोबारा आने के लिए धन्यवाद आदरणीया कल्पना जी, आ० अशोक कुमार रक्ताले जी 

सादर.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 23, 2014 at 9:59am

आदरणीया प्राची जी, कहमुकरी विधा पर बहुत ही जबरदस्त पकड़ बनी है, सभी कहमुकारियां एक से बढ़कर एक हुई हैं, अंतिम पक्ति से पूर्व तक यही भान होता है कि बात साजन की हो रही है और यही इसकी खूबसूरती भी है, बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर। 

Comment by Ashok Kumar Raktale on February 22, 2014 at 11:47pm

चाहे मीठे चाहे खारे 

राज़ पता हैं उसको सारे 

खोल न डाले राज़, हाय री ! 

क्या सखि साजन? न सखि डायरी ............वाह ! बहुत सुन्दर कह मुकरी हो गया है आदरणीया डॉ. प्राची सिंह जी.पुनः एक बार सभी लाजवाब कह-मुकरी छंदों के लिए सादर बधाई स्वीकारें.

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on February 22, 2014 at 10:26pm

आदरणीय योगराज भाई,

अन्यथा न लें। मैं सच कह रहा हूँ , बचपन में हम बच्चों से दादी , नानी और माँ भी समूह में पहेली के रूप में कविता की  कुछ पंक्तियाँ कहती जिसका एक ही उत्तर होता था, । हाँ उसे मुकरियाँ  नहीं , हम कुछ और  कहते थे । प्रायः यह रात्रि  भोजन के पूर्व खेला जाता था। इसी उद्देश्य से मैंने कुछ मुकरियों की कापी भी की है ।

............. सादर  

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