दायरा...
सोच का,
मन की उड़ान के
परिचित आसमान का,
अंतर्भावनाओं के विस्तार का,
अनुभूतियों के सुदूर क्षितिज का,
समयानुरूप
स्वतः विस्तारित हो, तो कैसे ?
तन मन बुद्धि अहंकार की
लोचदार चारदीवारी मैं कैद...
संकुचन के बल-प्रतिबल
से संघर्षरत,
होता क्लिष्ट से क्लिष्टतर
जटिल से दुर्भेद फिर अभेद
कर्कश कट्टर असह्य
आखिर
कौन सचेत, पहचानता है ये दायरा ?
पहले अपना
फिर दूसरों का..
कौन निर्भय, तोड़ता है ये दायरा ?
पहले अपना
फिर दूसरों का..
कौन उन्मुक्त, करता है आज़ाद ?
अंतर बद्ध पंछी को
पिंजर से-
असीम आकाश में
उड़ जाने के लिए...
क्या प्रियतम तुम?
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
कायिक परिसीमाओं के परे जाने और जानने की ललक सदा से सूक्ष्म को आग्रह से जीने और फिर उसे उद्बोधित करने को प्रेरित करती रही है. आपकी प्रस्तुत रचना उसी छाया में अपना निर्वहन पाती है.
सादर बधाइयाँ.
ऐसी रचनाएँ चिंतन को जन्म देती हैं,,,चिंतन सूक्ष्म से सूक्ष्मतर होता जाता है और तब बह भित्तिर्यों से टकराता नहीं उसकी शूक्ष्मता उसे कोई न कोई रास्ता दे ही देती है बहार निकलने का ..बस मैं तो ऐसे ही समझता हूँ जैसे आपकी रचनाओं का चिंतन मेरे काव्य लेखन के दायरे को बाधा रहा है बैसे ही चिंतन हर दायरे को बढाता है ..रही बात बन्धनों की तो बंधन किसी को पसंद नहीं ..हर जीव मुक्त होने में बिश्वास रखतअ है ..जो मुझे समझ में आया मैंने लिखा ..आपका मार्गदर्शन बांछित रहेगा ..सादर
आदरणीया प्राचीजी,
दायरा कितना छोटा या बड़ा ............ सचमुच यह सब मन की ही तो सोच है।
हार्दिक बधाई सुंदर रचना पर ।
आ0 प्राची जी सुंदर रचना हेतु बधाई स्वीकारें ।
एक अलग ही मनोदशा होती है आपकी रचनाओं की, यूं लगा जैसे किसी महर्षि को पढ़ रहा हूं, सादर
भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई डॉ प्राची सिंह जी | सादर
बेहद उत्कृष्ट भाव से संजोयी अनुपम रचना, हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीया डा.प्राची जी
क्या प्रियतम तुम ... बहुत उत्कृष्ट भाव समेटे , प्रश्न और अंत में उत्तर भी .. सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई ..
आदरणीया प्राची जी , सबके अन्दर बैठा प्रियतम ही दायरे की सही पहचान कर सकता है और मन ,बुद्धि , अहंकार ही रास्ते रोड़े हो ते हैं
आदरणीया , अगर मै सही न समझ पाया होउँ तो , समझाइयेगा ज़रूर ॥ सुन्दर रचना के लिये आपको बधाइयाँ ॥
आखिर
कौन सचेत, पहचानता है ये दायरा ?
पहले अपना
फिर दूसरों का..
कौन निर्भय, तोड़ता है ये दायरा ?.....
...
क्या प्रियतम तुम?
बहुत सुन्दर रचना आदरणीया प्राची जी
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