प्रथम प्रयास
(1)
रखती उसको हिये लगाये
सबके मन पर वो छा जाये
उसकी सूरत दिल मे उतरी
क्या सखि साजन ? न सखि मुंदरी
(2)
उसके नाम से ही डरूँ मै
होती शाम छिपती फिरूँ मै
आए जब चैन न पाऊँ क्षन भर
क्या सखि साजन ? ना सखि मच्छर
(3)
बालक बूढ़े सबको भाये
बिना उसके चैन नहि पाये
सुंदर सूरत सुनहरी चाम
क्या सखि साजन ? ना सखी आम
(4)
देख दूर से भाग पड़ूँ मै
गिरती पड़ती टिक न सकूँ मै
धूम मचाये बाहर अंदर
क्या सखि साजन ? न सखि बंदर
संशोधित
अप्रकाशित एवं मौलिक
Comment
:-)))
मच्छर, बंदर, आम आदि को लेकर भावमय हो उठना भला लगा, आदरणीय.
सादर
जी आ0 प्राची जी आप सही कह रही है । खैर इस सुंदर विधा पर काफी चर्चा हुई । जो कि रोचक है हर बार कुछ नया ही सीखने को मिला । आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीया अन्नपूर्णा जी
//मैंने सभी चर्चाओं को पढ़ा है परंतु ये कटिंग किसी पुस्तक कि लगती है इसलिए मैंने साझा किया//
प्रस्तुत की गयी कटिंग में हाइलाईटेड अंश के नीचे ही लाल रंग में दिया गया है ....सन्दर्भ साहित्यालोचन ब्लॉग
..तो यह बिलकुल स्पष्ट है कि ये अंश किसी पुस्तक का बिलकुल नहीं है बल्कि ये किसी ब्लॉग से ही कट किया गया है.
सादर.
आ0 प्राची जी मेरा पॉइंट आउट करने जैसा मंतव्य नहीं है बस मैंने कुछ यहाँ ही माने कि इसी मंच पर देखा तो साझा किया है मुझे विधा की , या उससे संबन्धित शिल्पगत समस्या नहीं है , जितनी भी मैंने पढ़ी या देखि हैं । जिस पर मैंने लिखा भी है कि ये किसी का कमेन्ट स्वरूप ही है । मैंने सभी चर्चाओं को पढ़ा है परंतु ये कटिंग किसी पुस्तक कि लगती है इसलिए मैंने साझा किया ।
सस्नेह
आदरणीया अन्नपूर्णा बाजपेयी जी
यह बहुत अच्छा लगा की आपने इस विधा के बारे में अध्ययन किया और आपने जिस हाईलाईटेड अंश को यहाँ साँझा किया है, उसे मैं दो तीन जगह और भी इसी मंच पर देख चुकी हूँ...और साथ ही उसपर हुई सार्थक चर्चाओं को भी...
http://www.openbooksonline.com/forum/topics/5170231:Topic:153703?id...
http://www.openbooksonline.com/profiles/blog/show?id=5170231%3ABlog...
क्या आपने मंच पर इससे सम्बंधित चर्चाएँ नहीं पढ़ीं? तो उपरोक्त लिंक पर अवश्य ही सभी चर्चाओं को देखें...
इस विधा पर सारी जानकारी पढने के बाद मेरी व्यक्तिगत समझ तो यही कहती है... की जिस विषय पर मुकरने की आवश्यकता ही नहीं..तो क्यों मुकरना और उसे पहेली सा बना समझने की भूल करना...और पहेली भी ऐसी जिसका उत्तर रचना में ही हो...मुझे इसमें कोइ तार्किकता नहीं नज़र आती..
सस्नेह
आ0 प्राची जी यों तो मैंने परिवर्तन कर दिये थे जो कि आपको अच्छे भी लगे । आपका हार्दिक धन्यवाद । जहां तक इस पर मैंने अद्ध्यन किया तो देखा कि सम्माननीय भारतेन्दु जी और खुसरो जी जैसे विदद्वानों ने काफी कुछ इस विषय पर लिखा है । इसकी एक प्रति आपको भी दिखाना चाहूंगी जो शायद पहले किसी ने कमेन्ट के रूप मे किया है , आप भी देखे और प्रतिकृया दें ।
कह मुकरियों में सार्थक परिवर्तन भला लगा
शुभकामनाएं
आ0 प्राची जी , आ0 सरिता जी , आ0 भण्डारी जी , आ0 कल्पना दी आप सबके स्नेह के लिए आभारी हूँ , मार्ग दर्शन हेतु आप सभी को हार्दिक धन्यवाद । यूं ही टिप्पणी रूप मे अपना स्नेह देते रहिए ।
अन्नपूर्णा जी, आपका प्रयास बहुत अच्छा लगा। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये। कथ्य के बारे में कहा जा चुका है।
आदरनीया अन्नपूर्णा जी , कह मुकरियों का बहुत सार्थक प्रयास के लिये आपको बधाइयाँ ॥
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