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2122       2122       212 

फाइलातुन   फाइलातुन   फाइलुन

(बहरे रमल मुसद्दस महजूफ)

वृत्ति जग की क्लिष्ट सी होने लगी

सोच सारी लिजलिजी होने लगी

भीड़ है पर सब अकेले दिख रहे 
भावनाओं में कमी होने लगी

चाहना में बजबजाती देह भर 
व्यंजना यूँ प्रेम की होने लगी

धर्म के जब मायने बदले गए 
नीति सारी आसुरी होने लगी

सूखती संवेदना घर-घर दिखे 
चेतना भी ठूँठ सी होने लगी

 

ढूँढ अब लाएँ कहाँ से हम किरण

रात सारी मावसी होने लगी

      -  बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by बृजेश नीरज on March 11, 2014 at 9:07pm

आदरणीय ओमप्रकाश जी ग़ज़ल के सम्बन्ध में सारी जानकारियाँ 'ग़ज़ल की बातें' तथा 'ग़ज़ल की कक्षा' समूह में उपलब्ध हैं. आप कृपया उन समूहों को देखें!

सादर!

Comment by Omprakash Kshatriya on March 11, 2014 at 8:47pm

फाइलातुन   फाइलातुन   फाइलुन--- के बारे में जानना चाहता हूँ . कृपया इस बारे में बताए .

Comment by बृजेश नीरज on March 10, 2014 at 8:00pm

आदरणीय अखिलेश जी, आपका बहुत-बहुत आभार!

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on March 10, 2014 at 7:44pm

आदरणीय बृजेश भाई ,

कलियुग में सब मशीनी जिंदगी जी रहे हैं ,कंकरीट के जंगल में रहते हैं , भावनायें मर चुकी हैं 

अच्छी गज़ल , हार्दिक बधाई 

Comment by बृजेश नीरज on March 10, 2014 at 7:10pm

आदरणीय मुकेश जी आभार!

Comment by MUKESH SRIVASTAVA on March 10, 2014 at 4:24pm

niceee

Comment by बृजेश नीरज on March 6, 2014 at 10:56pm

आदरणीया प्राची जी, आपका हार्दिक आभार!

'सारी' की मात्रा २२ है जबकि 'हर एक' की मात्रा २२१ हो जाएगी. 

सादर!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 6, 2014 at 12:50pm

आदरणीय बृजेश जी 

आपके धारदार तथ्यपरक कथन ग़ज़ल विधा में ढल कर बहुत सशक्तता से उभरे हैं. इस सशक्त सुन्दर ग़ज़ल के लिए ढेरों ढेर बधाई प्रेषित है .स्वीकार करें 

चाहना में बजबजाती देह भर 
व्यंजना यूँ प्रेम की होने लगी..........बहुत सुन्दर शेर कहा 

ढूँढ अब लाएँ कहाँ से हम किरण

रात सारी मावसी होने लगी...............ये भी बहुत शानदार... लेकिन एक सुझाव भर ...यदि 'सारी' की जगह 'हर एक' करें तो ?

सादर.

Comment by बृजेश नीरज on March 4, 2014 at 11:25pm

आदरणीया वंदना जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by Vindu Babu on March 4, 2014 at 11:06pm
वाह! बहुत बढ़िया लिखा आपने.
आज का स्पष्ट विवेचन...वो भी इतने सुंदर शिल्प में.
हार्दिक बधाई स्वीकारें इस प्रभावी गज़ल के लिए आदरणीय.
सादर

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