For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

2122       2122       212 

फाइलातुन   फाइलातुन   फाइलुन

(बहरे रमल मुसद्दस महजूफ)

वृत्ति जग की क्लिष्ट सी होने लगी

सोच सारी लिजलिजी होने लगी

भीड़ है पर सब अकेले दिख रहे 
भावनाओं में कमी होने लगी

चाहना में बजबजाती देह भर 
व्यंजना यूँ प्रेम की होने लगी

धर्म के जब मायने बदले गए 
नीति सारी आसुरी होने लगी

सूखती संवेदना घर-घर दिखे 
चेतना भी ठूँठ सी होने लगी

 

ढूँढ अब लाएँ कहाँ से हम किरण

रात सारी मावसी होने लगी

      -  बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 1303

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on March 11, 2014 at 9:07pm

आदरणीय ओमप्रकाश जी ग़ज़ल के सम्बन्ध में सारी जानकारियाँ 'ग़ज़ल की बातें' तथा 'ग़ज़ल की कक्षा' समूह में उपलब्ध हैं. आप कृपया उन समूहों को देखें!

सादर!

Comment by Omprakash Kshatriya on March 11, 2014 at 8:47pm

फाइलातुन   फाइलातुन   फाइलुन--- के बारे में जानना चाहता हूँ . कृपया इस बारे में बताए .

Comment by बृजेश नीरज on March 10, 2014 at 8:00pm

आदरणीय अखिलेश जी, आपका बहुत-बहुत आभार!

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on March 10, 2014 at 7:44pm

आदरणीय बृजेश भाई ,

कलियुग में सब मशीनी जिंदगी जी रहे हैं ,कंकरीट के जंगल में रहते हैं , भावनायें मर चुकी हैं 

अच्छी गज़ल , हार्दिक बधाई 

Comment by बृजेश नीरज on March 10, 2014 at 7:10pm

आदरणीय मुकेश जी आभार!

Comment by MUKESH SRIVASTAVA on March 10, 2014 at 4:24pm

niceee

Comment by बृजेश नीरज on March 6, 2014 at 10:56pm

आदरणीया प्राची जी, आपका हार्दिक आभार!

'सारी' की मात्रा २२ है जबकि 'हर एक' की मात्रा २२१ हो जाएगी. 

सादर!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 6, 2014 at 12:50pm

आदरणीय बृजेश जी 

आपके धारदार तथ्यपरक कथन ग़ज़ल विधा में ढल कर बहुत सशक्तता से उभरे हैं. इस सशक्त सुन्दर ग़ज़ल के लिए ढेरों ढेर बधाई प्रेषित है .स्वीकार करें 

चाहना में बजबजाती देह भर 
व्यंजना यूँ प्रेम की होने लगी..........बहुत सुन्दर शेर कहा 

ढूँढ अब लाएँ कहाँ से हम किरण

रात सारी मावसी होने लगी...............ये भी बहुत शानदार... लेकिन एक सुझाव भर ...यदि 'सारी' की जगह 'हर एक' करें तो ?

सादर.

Comment by बृजेश नीरज on March 4, 2014 at 11:25pm

आदरणीया वंदना जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by Vindu Babu on March 4, 2014 at 11:06pm
वाह! बहुत बढ़िया लिखा आपने.
आज का स्पष्ट विवेचन...वो भी इतने सुंदर शिल्प में.
हार्दिक बधाई स्वीकारें इस प्रभावी गज़ल के लिए आदरणीय.
सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आदाब, आदरणीय,  ' नूर ' मैंने आपके निर्देश का संज्ञान ले लिया है! "
9 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"बहुत बहुत आभार आ. सौरभ सर ..आप से हमेशा दाद उन्हीं शेरोन को मिलती है जिन पर मुझे दाद की अपेक्षा…"
19 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आदरणीय नीलेश भाई,  आपकी इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद और कामयाब अश'आर पर…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. शिज्जू भाई "
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आ. चेतन प्रकाश जी,आपको धुआ स्वीकार नहीं हैं तो यह आपका मसअला है. मैंने धुआँ क़ाफ़िया  प्रयोग में…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल के फीचर किए जाने की हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह, आदरणीय हरिओम जी, वाह।  आप कुण्डलिया छंद के निष्णात हैं। आपके सहभागिता के लिए हार्दिक…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी,  आपकी छंद रचना और सहभागिता के लिए धन्यवाद।  योगी जन सब योग को,…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"छंदों की प्रशंसा और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय अशोक जी"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अजय गुप्ता जी सादर, प्रदत्त चित्र को छंद-छंद परिभाषित किया है आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें.…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक  भाईजी  छंदों की प्रशंसा और प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद आभार…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 168 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार योग के लाभ बताते सुन्दर कुण्डलिया छंद रचे हैं…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service