एक मासूम कली
भंवरे के स्पर्श से
खिल उठी
मुस्काई
हर्षाई
लिया पुष्प सा रूप
एक दिन
भंवरा उसका खो गया
पुष्प का हाल बुरा हो गया
उदास बेचैन पुष्प को चाहिए था
थोड़ा प्यार
थोड़ा दुलार
थोड़ी हंसी
थोड़ी हमदर्दी
जो ना मिल पाई
फिर एक दिन
आया एक भंवरा
जो उसके आसपास मंडराता
उसे तराने सुनाता
उसे खिलखिलाना सिखाता
पुष्प हुआ पुनर्जीवित
उसके प्यार से
दुलार से
पर
चिंतित हर क्षण
ना खो दे
अपनी खुद्दारी
आत्मसम्मान
अपना अस्तित्व
क्योंकि
यह दुनिया है स्वार्थी
यहाँ कुछ भी पाने के लिए
कुछ खोना पड़ता है
उस ने सोचा
अगर कुछ खोना है तो
खोना होगा अपना वजूद
या तो वो होगा
किसी मंदिर
किसी शहीद की
समाधि पर अर्पित
फिर क्यों करे
वो
अपना आत्मसम्मान
अपनी खुद्दारी समर्पित
अगर मिले कोई ऐसा पुष्प
उसे
अपने प्यार से
दुलार से
सींचना हर दम
नहीं करना उसे मजबूर
खोने के लिए उसका वजूद
.....................................
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
भँवरे व पुष्प के इंगित से सामाज में वैयक्तिक पारस्परिक समझ के कुछ विशिष्ट बिंदु साँझा करने की चेष्टा हुई है.
शुभकामनाएं
बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना
आदरणीया सरिताजी ,
अच्छी कविता, सुंदर भाव , हार्दिक बधाई
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति के लिए बधाई आदरणीया सरिता भाटिया जी
आदरणीया मीना जी रचना पसंद करने के लिए शुक्रिया
आदरणीय जितेन्द्र जी शुक्रिया
आदरणीया ब्रिजेश जी उसाह बढ़ाते रहें
आदरणीय कल्पना मिश्रा जी हार्दिक आभार
आदरणीया कल्पना दी हौंसला बढ़ाने के लिए शुक्रिया
आदरणीया अन्नपूर्णा जी हार्दिक आभार
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