फागुन का मास
तारों की बारात
चाँदनी के रथ पर
आएगा मोहन
यमुना के तीर
होके अधीर, में तो उसकी हो जाऊँगी ।
श्यामल सा मनोहर गात
पीला सा सिर पर पाग
कानों में कुंडल
अधरों पे मोती
धरे तिरछा पैर
छोड़ सब की खैर, मै तो चरणन में गिर जाऊँगी ।
होंठों की शान
प्यारे की मुस्कान
मीठी सी चितवन
सखियों का लूटे मन
कर के सब जतन, मै तो उनकी हो जाऊँगी ।
माँ यशोदा का छैया
बलदाऊ का भैया
राधा से करे मनुहार
मेरा दिल करे गुहार
मैं मन मार एक टक निहारूंगी ।
है भक्तों की पुकार
प्रभु सुन लो एक बार
आओ दिल के मँझार
मेरे नैना भाए बेजार
मैं तो, नेहा तुम संग लगाऊँगी ।
कल्पना मिश्रा बाजपेई
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीया प्राची मैडम आप का सुझाव सिर आँखों पर ।आप ने रचना को देखा पढ़ा बहुत बहुत आभार /सादर !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
मनोहर भाव
पर अब शिल्प पर भी अवश्य ही साधा प्रयास हो
शुभकामनाएं आ० कल्पना मिश्रा बाजपेयी जी
आदरणीय जितेंन्द्र जी, आदरणीया सारिता जी सराहना हेतु बहुत बहुत आभार सादर !!
बहुत सुंदर व् कोमल भाव, बधाई स्वीकारें आदरणीया कल्पना जी
वाह सुन्दर चित्रण मन के भावों का ,बधाई आपको कल्पना जी
आदरणीया अन्नपूर्णा दी और आदरणीया मीना दी सराहना हेतु आभार सादर
होंठों की शान
प्यारे की मुस्कान
मीठी सी चितवन
सखियों का लूटे मन
कर के सब जतन, मै तो उनकी हो जाऊँगी ।............................... सुंदर पंक्तियाँ
माँ यशोदा का छैया
बलदाऊ का भैया
राधा से करे मनुहार
मेरा दिल करे गुहार
मैं मन मार एक टक निहारूंगी ।.......................... इस पंक्ति मे कुछ अधूरा सा लगता है कल्पना जी , शायद आप कुछ और कहना चाह रही है ।
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