मुझे चिंता में डूबे देख
तुम दुहाई देते
जब तक मेरा हाथ है
तुम्हारे हाथ में
मेरी सांसें
तुम्हारी साँसों में महकती है
विश्वास है महत्वाकांक्षा के घोड़ों पर
जो हर बाधा पार कर लेंगे
जब तक हूँ मैं जीवित
तुम खुद को अकेला मत समझो
मैं हूँ ना हमेशा तुम्हारे साथ
तुम्हारा साया बनकर
वोही साया ढूढ़ती हूँ
चारों ओर
आठों पहर
शायद
साया खो गया है
मुझ में ही कहीं
जैसे दोपहर के सूर्य में
मेरी परिछाई
उसी से तो पाया है मैंने वजूद
अपने होने का
और वो महत्वाकांक्षा के घोड़े
दौड़ रहे हैं सरपट
तुम्हारे विश्वास के साथ
हर बाधा को पार करते हुए
...................................
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय मदन मोहन जी शुक्रिया
आदरणीय जितेन्द्र जी हार्दिक आभार
आदरणीय केवल जी शुक्रिया
आदरणीया अन्नपूर्णा जी हार्दिक आभार
आदरणीया मीना पाठक जी आपको रचना पसंद आई मेरी लेखनी को बल मिला हार्दिक आभार
आदरणीय भाई मनोज जी खुबसूरत कविता के साथ आप ने जो अनुमोदन किया है उसके लिए आभारी हूँ
बहुत सुंदर,मन को छू जाती रचना. बधाई आदरणीया सरिता जी
आ0 सरिता जी, बहुत ही सुन्दर व सात्विक चिंतन भाव में बढ़िया कविता। हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,
आ0 सरिता भाटिया जी सुंदर भाव युक्त रचना हेतु बधाई स्वीकारें ।
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