मुझे चिंता में डूबे देख
तुम दुहाई देते
जब तक मेरा हाथ है
तुम्हारे हाथ में
मेरी सांसें
तुम्हारी साँसों में महकती है
विश्वास है महत्वाकांक्षा के घोड़ों पर
जो हर बाधा पार कर लेंगे
जब तक हूँ मैं जीवित
तुम खुद को अकेला मत समझो
मैं हूँ ना हमेशा तुम्हारे साथ
तुम्हारा साया बनकर
वोही साया ढूढ़ती हूँ
चारों ओर
आठों पहर
शायद
साया खो गया है
मुझ में ही कहीं
जैसे दोपहर के सूर्य में
मेरी परिछाई
उसी से तो पाया है मैंने वजूद
अपने होने का
और वो महत्वाकांक्षा के घोड़े
दौड़ रहे हैं सरपट
तुम्हारे विश्वास के साथ
हर बाधा को पार करते हुए
...................................
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
मैंने १४ फ़रवरी को फेसबुक पर एक स्टेट्स अपडेट डाला था..सोचता हूँ आपकी कविता पर प्रतिक्रिया स्वरूप उसी को पेस्ट कर दूं...
मैं बंदी हूँ -
उन असंख्य श्रृंखलाओं में-
जिनका ताना बाना -
बुनते हुए -
सदियों की -
अतृप्त ईच्छाओं ने -
हमारे चौखट पर -
अपने प्राण त्याग दिए हैं|
बधाई हो सरिता बहन..
आदरणीय आशुतोष जी हार्दिक आभार मार्गदर्शन करते रहें
आदरणीय प्रदीप जी आपकी उत्साहित प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ है
साया खो गया है
मुझ में ही कहीं
जैसे दोपहर के सूर्य में
मेरी परिछाई
उसी से तो पाया है मैंने वजूद
अपने होने का
और वो महत्वाकांक्षा के घोड़े
दौड़ रहे हैं सरपट
तुम्हारे विश्वास के साथ आदरणीया सरिता जी मर्मस्पर्शी इस रचना के लिए तहे दिल बढ़ाई स्वीकार करें सादर
साया खो गया है
मुझ में ही कहीं
जैसे दोपहर के सूर्य में
मेरी परिछाई
उसी से तो पाया है मैंने वजूद
अपने होने का
बहुत खूब
क्या वर्णन किया है बधाई सादर आदरणीया जी
आदरणीय गिरिराज जी हार्दिक आभार
आदरणीया श्याम जी हार्दिक आभार
आदरणीया सरिता जी , सुन्दर भाव पूर्ण प्रस्तुति के लिये बधाई ॥
इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई |
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