प्रथम प्रयास ............
1-) देह लता प्रभु दीन्ह है, काहे करत गुमान,
पर सेवा उपकार कर ,तब हीं पावे मान ।
2- ) सुत, दारा अरु बन्धु सब, स्वारथ को संसार,
भज लो साईं राम को, खुद का जनम संभार ।
3- ) मन मैला तन साफ है, क्यों फैलाये जाल ,
हरी को भावत साफ मन, लिखलो अपने भाल ।
4-) मंदिर, पूजा ,यज्ञ,तप, ऊपर का व्यापार ,
मन मंदिर नित झाढ़ लो, पाओगे प्रभु द्वार ।
5-) चौरासी भटकत फिरयो,खूब मिलो परिवार ,
कटु वचनन कों बोल कर, करते रहे बिगार ।
6-)आखें जन का आईना, देखो तो चितलाय,
ह्रदय की लौ जान सब, बिना कछु किये उपाय ।
7- ) दीपक उर का बार कें, बैठी सांझ सकार ,
हरी आवन कि वाट में, नैना थके हमार ।
8-) प्रभु का माया जाल है, समझो वाकी चाल ,
जाके उसके सामने, कहना होगा हाल ।
कल्पना मिश्रा बाजपेई
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
सुंदर है दोहावली, गहन बड़े हैं भाव |
यदि सब इनको मान ले, नहीं रहेगा घाव ||
कहीं कहीं व्यतिरेक है, टंकण का अवरोध |
बहुत बधाई आपको, थोडा कर लें शोध ||
आदरणीया इस प्रथम प्रयास में ही आपने भक्ति को सुन्दर ढंग से मंडित किया है..
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