(मौन) शब्द से सभी परिचित है .... कौन नहीं जनता इस शब्द की विशालता को.....
आज 22 अप्रेल है पूरा एक साल हो गया दोनों को गए हुए, सुधा मन ही मन बुदबुदा रही थी।जरा चाय लाना बालकनी से पति ने आवाज लगाई। चाय तो बनी और पी भी रहे थे दोनों लेकिन सुधा क्षुब्ध, अकेली, बेचैन सी लग रही थी।आज का उजला-उजला नरम सबेरा भी अपना जादू न चला पा रहा था, महेश ने सुधा को हिलाते हुए कहा कहाँ हो? यहीं मीठी ...... क्या हो गया है तुमको ?
सुधा नम आँखों से महेश की ओर देख कर बोली गर ना पढ़ाते इतना अपनी मीठी और बबलू को..... अपनी व्यथा छुपाते, पत्नी को दिलासा देते हुए महेश ने कहा, तुम्हें अच्छा लगता अगर बच्चे भी हमारी तरह कौड़ी-कौड़ी को मोहताज रहते, शुभ शुभ बोलो.... कुछ भी होता, कम से कम मेरे साथ तो होते, मेरे घर का एक -एक कोना गुलजार तो रहता। आप भी बबलू के पापा कुछ भी कहते हो आज जन्म दिन है मेरे लाडले का और दोनों विदेश में जा बसे हैं, कहते- कहते सुधा मौन हो गई । चुप्पी तोड़ते हुए महेश बोले चिंता मत करो मीठी की माँ बच्चे जरूर घर लौटेंगे। क्या जी एक वर्ष हो गया बच्चों की सूरत देखे और गले लगाए हुए। आप तो यूं ही कहते रहते हो, कहते हुए सुधा की आँखें भर आईं ।
काश ! हमारे बच्चे ना गए होते विदेश और न फैला होता मौन का सन्नाटा हम जैसे लोगों के घरों और दिलों में ।
कल्पना मिश्रा बाजपेई
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ०प्राची मैडम आभार सादर !
लघु कथा पर सुन्दर प्रयास हुआ है आ० कल्पना मिश्रा जी
शुभकामनाएं
आप सभी गुणिजनों का बहुत-बहुत आभार सादर।
वाह !! कल्पना जी अब आपकी कथा अच्छी हो गई है , शीर्षक से न्याय कर रही है , बधाई आपको इस लघु कथा के लिए ।
पहले बच्चों से हम लोग ही बहुत सी अपेक्षाएं रखते हैं खुश होते हैं उन्हें काबिल देखकर ,किन्तु माँ बाप उनको हर वक़्त याद करते हैं सामने देखना चाहते हैं ये उनकी ममता है ..कहानी घर घर की ..एक माँ होने के नाते इस कथा के भाव दिल के नजदीक पा रही हूँ ,बहुत बहुत बधाई
अच्छी कथा है! आपको हार्दिक बधाई!
समय के साथ बच्चे माँ-बाप से दूर हो जाते हैं लेकिन माँ-बाप उन्हें अपने दिल से दूर नहीं कर पाते!
सार्थक सन्देश देती सुन्दर लघु कथा का लिए बधाई आ. कल्पना मिश्रा बाजपेयी जी
बेहतरीन लघुकथा,,बधाई आपको,,, |
कल्पना जी , पहले तो आप इसकी टंकण त्रुटियाँ सुधार लें , कई शब्द ऐसे है जो कुछ का कुछ अर्थ दे रहे है । जैसे :- कोढ़ी कोढ़ी = जो कि मेरे ख्याल से आप कौड़ी कौड़ी लिखना चाह रही थीं इसी तरह और भी शब्द है जो सुधार मांग रहे हैं , एक वर्ष कि बात आरंभ हुई है अंत मे आपने वर्षों लिख दिया है । आप अपनी कथा को पुनः पढ़ लीजिये कमियाँ आपको खुद ब खुद समझ आएंगी उन्हे सुधार दीजिये , अभी इसमे हल्का पन सा लगा रहा है । अन्यथा न लें !! सप्रेम ।
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