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“ कह मुकरियाँ “ – प्रथम प्रयास ( गिरिराज भन्डारी )

कह मुकरियाँ – पाँच

*******************

मुझे छोड़ वो कहीं न जाये

इधर उधर की सैर कराये

साथ रहे जैसे हो  धड़कन

क्या सखि साजन , नहीं सखि मन

 

मुझको सच्ची राह दिखाये

सही गलत वो मुझे सुझाये 

मै, जाँ कह दूँगी, नहीं शरम

क्या सखि साजन . नहीं सखि धरम

                                 

जीते जी वो साथ न छोड़े

मर जाऊँ तो पीछे दौड़े

कर देता मेरी आँखें नम

क्या सखि साजन , नहीं रे करम 

                                 

मुझको हरदम राह भुलाये

पूछो तो कुछ नहीं बताये

जैसे कोई  उठाई  क़सम

क्या सखि साजन , नहीं सखि भरम

 

पास रहे तो बहुत सताये

बिना आग भी खूब जलाये

सब उल्टा कर दे  रहन सहन

क्या सखि साजन , नहीं सखि जलन 

 

मौलिक एवँ अप्रकाशित ( संशोधित )

 

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Comment

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Comment by Neeraj Neer on March 11, 2014 at 8:50pm

बहुत ही सुन्दर कह मुकरियां कही आपने आदरणीय .. बहुत बधाई ..

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on March 11, 2014 at 7:24pm

छोटे भाई गिरिराज ,

अच्छा प्रयास है , प्रवाह कहीं -कहीं बाधित है।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 11, 2014 at 1:17pm

आदरनीया , मीना जी , सही मे मात्रा गिनने मे ग़लती हुई है ,आपका हार्दिक आभार , मै सुधार कर लेता हूँ ॥ सराहना के लिये आपका शुक्रिया ॥

Comment by Meena Pathak on March 11, 2014 at 9:45am
Aadarneey Giriraj ji anyatha na lijiyega .. Mai bhi seekh rahi hun, mujhe jo laga bo bol diya, saadar
Comment by Meena Pathak on March 11, 2014 at 9:37am
Matraayen ek baar gin lijiyega .. Sundar pryaas badhai .. Saadar

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