दो परिंदे थे | दोनों में बड़ा प्रेम था | दोनों साथ ही रहा करते थे | जहां भी जाते एक साथ | जो भी खाते मिल बाँट कर खाते | दोनों ने एक ही वृक्ष की एक ही डाली पर एक ही प्रकार के तिनकों से एक साथ घरौंदा बनाया | एक दिन एक परिंदा बीमार पड़ गया | दूसरे ने भी खाना पीना छोड़ दिया किन्तु ऐसा कब तक चल सकता था ? स्वस्य्घ परिंदे ने सोचा मेरा भाई कमजोर हो गया है | कुछ दाने अपने चोंच में भरकर लेता आऊँ, हो सकता है मेरा भाई ठीक हो जाय? वह दाना इकठ्ठा करने चला गया | थोड़ी देर में एक और परिंदा उस पेड़ पर आया | उसने बीमार परिंदे से कहा, ‘तू मुझे सलाम कर, मैं ईश्वर का भेजा हुआ दूत हूँ, वह जो अभी गया है और तुम दोनों के ही रूह शैतान के कब्जे में है, मैं तुम्हे उससे आजाद करता हूँ, अब तू चंगा हो जाएगा लेकिन याद रखना जब तेरा दोस्त आएगा तो उससे भी यह बताना और कहना की वह भी उस इल्म को इज्जत दे जिसे मैं तुम्हे दे रहा हूँ और अगर वह न माने तो उससे जंग करना और तब तक लड़ते रहना जब तक वह मान न जाए, अगर तू मारा जाता है तो तुझे जन्नत मिलेगी |’ परिंदा सच में चंगा हो गया | जब दूसरा परिंदा आया तो उसे बड़ी खुशी हुई | पहले परिंदे ने उससे सारी बात बताई और सिजदा करने को कहा | पहली बार परिंदे ने उसकी बात नहीं मानी | अँधेरी रात में दोनों ही परिंदों के घरौंदे धू धू कर जलने लगे |
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
एक गंभीर विषय पर संवेदना के साथ बात उठायी गयी है. मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारें. विभेद पैदा करने का सटीक बिम्ब बुना गया है.
आदरणीय बृजेश भाई...आदरणीया राजेश कुमारी जी...आदरणीय गिरिराज सर...आदरणीय जितेन्द्र भाई...रचना को पसंद करने और अभिभूत कर देने वाली प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय तल से आभारी हूँ
बहुत अच्छी लघुकथा, दूसरों की बातों में आकर ही इन्सान अपना सब कुछ खो देता है. हार्दिक बधाई आपको आदरणीय मनोज जी
गलती किसकी ? दूसरों के बहकावे में आकर लोग अपना ही घर फूंकेंगे ...चिंगारी लगाने वाले पथ भ्रष्ट करने वाले बहुत मिलेंगे ,गलती उनकी है जो अपना दिमाग प्रयोग न करके गुमराह होते हैं ..एक संवेदन शील मुद्दे को कथा के रूप में ढालने पर आपको बधाई |
बहुत ही गंभीर विषय पर बहुत ही सुन्दर कथा रची है! आपको हार्दिक बधाई!
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