For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दो परिंदे थे | दोनों में बड़ा प्रेम था | दोनों साथ ही रहा करते थे | जहां भी जाते एक साथ | जो भी खाते मिल बाँट कर खाते | दोनों ने एक ही वृक्ष की एक ही डाली पर एक ही प्रकार के तिनकों से एक साथ घरौंदा बनाया | एक दिन एक परिंदा बीमार पड़ गया | दूसरे ने भी खाना पीना छोड़ दिया किन्तु ऐसा कब तक चल सकता था ? स्वस्य्घ परिंदे ने सोचा मेरा भाई कमजोर हो गया है | कुछ दाने अपने चोंच में भरकर लेता आऊँ, हो सकता है मेरा भाई ठीक हो जाय? वह दाना इकठ्ठा करने चला गया | थोड़ी देर में एक और परिंदा उस पेड़ पर आया | उसने बीमार परिंदे से कहा, ‘तू मुझे सलाम कर, मैं ईश्वर का भेजा हुआ दूत हूँ, वह जो अभी गया है और तुम दोनों के ही रूह शैतान के कब्जे में है, मैं तुम्हे उससे आजाद करता हूँ, अब तू चंगा हो जाएगा लेकिन याद रखना जब तेरा दोस्त आएगा तो उससे भी यह बताना और कहना की वह भी उस इल्म को इज्जत दे जिसे मैं तुम्हे दे रहा हूँ और अगर वह न माने तो उससे जंग करना और तब तक लड़ते रहना जब तक वह मान न जाए, अगर तू मारा जाता है तो तुझे जन्नत मिलेगी |’ परिंदा सच में चंगा हो गया | जब दूसरा परिंदा आया तो उसे बड़ी खुशी हुई | पहले परिंदे ने उससे सारी बात बताई और सिजदा करने को कहा | पहली बार परिंदे ने उसकी बात नहीं मानी | अँधेरी रात में दोनों ही परिंदों के घरौंदे धू धू कर जलने लगे |
मौलिक और अप्रकाशित

Views: 723

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 26, 2014 at 8:22pm

एक गंभीर विषय पर संवेदना के साथ बात उठायी गयी है. मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारें. विभेद पैदा करने का सटीक बिम्ब बुना गया है.

Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on March 19, 2014 at 10:26am

आदरणीय बृजेश भाई...आदरणीया राजेश कुमारी जी...आदरणीय गिरिराज सर...आदरणीय जितेन्द्र भाई...रचना को पसंद करने और अभिभूत कर देने वाली प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय तल से आभारी हूँ  

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 17, 2014 at 10:15pm

बहुत अच्छी लघुकथा, दूसरों की बातों में आकर ही इन्सान अपना सब कुछ खो देता है. हार्दिक बधाई आपको आदरणीय मनोज जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 14, 2014 at 10:02pm


आदरनीय मनोज भाई , बहुत संवेदन शील विषय मे बहुत सुन्दर लघु कथा की रचना हुई है ॥ हार्दिक बधाइयाँ ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 14, 2014 at 9:04pm

गलती किसकी ? दूसरों के बहकावे में आकर लोग अपना ही घर फूंकेंगे ...चिंगारी लगाने वाले पथ भ्रष्ट करने वाले बहुत मिलेंगे ,गलती उनकी है जो अपना दिमाग प्रयोग न करके गुमराह होते हैं ..एक संवेदन शील मुद्दे को कथा के रूप में ढालने पर आपको बधाई |

Comment by बृजेश नीरज on March 14, 2014 at 8:27pm

बहुत ही गंभीर विषय पर बहुत ही सुन्दर कथा रची है! आपको हार्दिक बधाई!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"क्या बात है! ये लघुकथा तो सीधी सादी लगती है, लेकिन अंदर का 'चटाक' इतना जोरदार है कि कान…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service