किरणों को अभिशाप पड़ेंगी वे जिन जिन पर
कर देंगी परछाईं काली किसी पटल पर ।
हर जीवन के संग जनमती मृत्यु, अजय है
हर आशा में छुपा निराशा का भी भय है ॥
धन औ ऋण का योग बनाता सदा शून्य है
गोल शून्य सा भाल किन्तु रत धन औ ऋण में ।
हासिल जिसका शून्य पराजय वह कहलाती
किन्तु शून्य को छू पाऊँ तो अजय विजय है ॥
हर आशा में छुपा निराशा का भी भय है ॥
जन्मदिवस कि ख़ुशी प्रसव के पीर से उपजी
राम नाम का ज्ञान मरा में छुपा मिला था ।
शब्द तो कहते हैं, पर क्या यह बात सही है ?
हर बार निराशा के आखिर में आशा तय है ?
हर आशा में छुपा निराशा का भी भय है ॥
प्रदीप
17 /03 /2014
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
Dhanyavaad नादिर ख़ान sahab
बहुत उम्दा रचना है आदरणीय प्रदीप जी, जिंदगी का निचोड़ आपकी रचना मे समाहित है...
कितनी गहराई से सोच कर आपने इसे लिखा भाई कमाल है ।
is sundar kaavyatmak pratikriya ke liye haardik aabhaar मनोज कुमार सिंह 'मयंक' ji,
aapko bhi holi ke dheron shubhkaamnayein
जन्म मृत्यु का चक्र वक्र हो या फिर सीधा |
कोटि कोटि ब्रम्हांड, काल ने सबको जीता ||
द्वैत भाव भाव दुर्धर्ष पराक्रम से जय होगा |
बिंदुमात्र अस्तित्व सिंधु बन कर लय होगा ||
उन्नत वैचारिक कविता के लिए कोटिशः बधाइयां आदरणीय प्रदीप भाई...सपरिवार,सस्नेह होली की हार्दिक शुभकामनाएं
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