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भारतीय किसान (प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा)

भारतीय किसान 

-----------------

जय जवान जय किसान 

जग का नारा झूंठा  

भाग्य किसान  कैसा तेरा

प्रभू भी तुझसे रूठा 

लेकर हल खेत में 

नंगे पाँव तू जाए 

मखमली कालीन पे

वणिक विश्राम पाए 

भरता सगरे जग का पेट 

खुद है  भूखा सोता 

बिके फसल  तेरी जब 

कर्जा कम न होता 

हाय रे किस्मत तेरी 

कैसा  भाग्य अनूठा 

जय जवान जय किसान 

जग का नारा झूंठा 

देता अपना खून पसीना 

 इक  दाना तब बनता 

बाजार जाये जब फसल 

भाव  न पूरा  मिलता 

उधार ले  खाद और पानी 

बीज जमाए  न जमता 

कृषि  रक्षा उपकरणों में 

काला  धंधा है चलता 

व्यापारी और सरकार ने 

आपस में है रिश्ता गूंठा 

जय जवान जय किसान 

जग का नारा झूंठा 

मौलिक /अप्रकाशित 

प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा 

२३.०३.२०१४

Views: 642

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Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 31, 2014 at 7:20pm

आदरणीय गुरुदेव श्री सौरभ सर जी 

सादर अभिवादन 

जो हों, जैसा हूँ आपका आशीर्वाद है 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 31, 2014 at 7:18pm

आदरणीय डा. आशुतोष मिश्र जी 

सादर आभार प्रोत्साहन हेतु 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 31, 2014 at 7:18pm

स्नेही वन्दना तिवारी जी 

खुश रहिये 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 31, 2014 at 7:17pm

आदरणीय श्री जीतेन्द्र गीत जी 

सादर आभार 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 31, 2014 at 7:16pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी सादर आभार प्रोत्साहन हेतु 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 28, 2014 at 3:11am

ज़मीन की बातें ज़मीनी ढंग से !  आदरणीय प्रदीपजी, इस शैली के आप उर्वर कवि रहे हैं. बहुत-बहुत बधाई !

Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 25, 2014 at 5:15pm

आदरणीय प्रदीप जी किसान की मानसिक पीड़ा को दर्शाती रचना , सोचने के लिए बिबश करती है ..इस रचना के लिए तहे दिल बधाई स्वीकार करें सादर

Comment by Vindu Babu on March 25, 2014 at 7:06am

सही कहा आपने आदरणीय.

किसान ही आधार है और किसान ही पिस रहा है और अभिजात्य वर्ग उसे हेय दृष्टि से भी देखते हैं।

खाद बीज सब इतना मंहगा है कि बेचारा किसान अपनी मेहनत भी मुश्किल से निकाल पाता है,और उत्पन्न फ़सल के भाव के बारे में...सब तो आपने लिखा है।

आपकी इस यथार्थ अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई देती हूँ।

सादर

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 24, 2014 at 11:31pm

उम्मीद व् आशाओं के सहारे अपना जीवन-यापन करने वाले किसान को पृकृति की मार भी झेलनी पड़ जाती है, बहुत सुंदर भावनात्मक रचना प्रस्तुति आदरणीय प्रदीप जी, हार्दिक बधाई स्वीकारें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 24, 2014 at 8:37pm

किसान के जीवन का बहुत सुन्दर और सटीक चित्रण किया है रचना में आपने बहुत- बहुत बधाई आदरणीय प्रदीप कुमार सिंह जी. 

कृपया ध्यान दे...

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