ध्यान से देखो
वो पॉलीथीन जैसी रचना है
हल्की, पतली, पारदर्शी
पॉलीथीन में उपस्थित परमाणुओं की तरह
उस रचना के शब्द भी वही हैं
जो अत्यन्त विस्फोटक और ज्वलनशील वाक्यों में होते हैं
वो रचना
किसी बाजारू विचार को
घर घर तक पहुँचाने के लिए इस्तेमाल की जायेगी
उस पर बेअसर साबित होंगे आलोचना के अम्ल और क्षार
समय जैसा पारखी भी धोखा खा जाएगा
प्रकृति की सारी विनाशकारी शक्तियाँ मिलकर भी
उसे नष्ट नहीं कर सकेंगी
वो पॉलीथीन जैसी रचना
एक दिन कालजयी कचरा बन जाएगी
और सामाजिक पर्यावरण को सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचाएगी
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
बहुत बहुत धन्यवाद Akhand Gahmari जी
बेहतरीन रचना के लिए बहुत सी बधाई आपको
बहुत बहुत शुक्रिया Baidyanath Saarthi जी
आदरणीय , आपकी विचारशीलता को नमन ! कल्पनाशीलता को नमन ! बेजोड़ सृजन !
//पर लिखूँगा तो मैं वही जो मैं लिखना चाहता हूँ न कि जो पाठक पढ़ना चाहता है //
ग़ज़ब !
आदरणीय धर्मेन्द्रजी, आप कई बार ऐसी बातें करते हैं जिन्हें बार-बार आपसे सुनना इस मंच के लिए ही नहीं हिन्दी साहित्य के लिए आवश्यक है. हिन्दी भाषी समाज और आशान्वित होगा.
आगे कुछ नहीं कहूँगा. बस आशा है कि आप ऐसा कहते रहें.
सादर
बहुत बहुत शुक्रिया Saurabh Pandey जी। ये रचना ही ऐसी है कि विज्ञान के टर्म्स के बिना जो मैं कहना चाह रहा हूँ वो कह नहीं पाऊँगा। पाठक तक अगर रचना नहीं पहुँच पाती तो ये मेरी मजबूरी है। पर लिखूँगा तो मैं वही जो मैं लिखना चाहता हूँ न कि जो पाठक पढ़ना चाहता है :)।
बहुत बहुत शुक्रिया विजय मिश्र जी
बहुत बहुत धन्यवाद Dr Ashutosh Mishra जी
विशेष मंशा के वशीभूत सुगढ़ शिल्प के आवरण में प्रस्तुत की गयी रचनाओं पर उठी आपकी उंगली अत्यंत तोषकारी लगी.
यह अवश्य है कि विज्ञान के टर्म्स इस रचना को विशिष्ट बना दे रहे हैं, जिस कारण अन्य विषय से प्रशिक्षित पाठक स्वयं को असहाय देख रहे होंगे.
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