बने रहें ये दिन बसंत के,
गीत कोकिला गाती
रहना।
मंथर होती गति जीवन की,
नई उमंगों से भर जाती।
कुंद जड़ें भी होतीं स्पंदित,
वसुधा मंद-मंद मुसकाती।
देखो जोग न ले अमराई,
उससे प्रीत जताती
रहना।
बोल तुम्हारे सखी घोलते,
जग में अमृत-रस की धारा।
प्रेम-नगर बन जाती जगती,
समय ठहर जाता बंजारा।
झाँक सकें ना ज्यों अँधियारे,
तुम प्रकाश बन आती
रहना।
जब फागुन के रंग उतरकर,
होली जन-जन संग मनाएँ।
मिलकर सारे सुमन प्राणियों
के मन स्नेहिल भाव जगाएँ।
तब तुम अपनी कूक-कूक से
जय उद्घोष गुँजाती
रहना।
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय अरुण अनंत जी, आपकी टिप्पणी ने उत्साह में बीस गुनी वृद्धि कर दी। आपका हार्दिक धन्यवाद
आदरणीय सौरभ जी, रचना पर आपके अनुमोदन से सकारात्मक विचारों में और वृद्धि हो जाती है। आपका हृदय से आभार
आदरणीय आशुतोष मिश्रा जी, आपकी ऊर्जावर्धित करती हुई सुंदर टिप्पणी के लिए मन से धन्यवाद
आदरणीय लड़ीवाला जी,प्रोत्साहित करने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद
//देखो जोग न ले अमराई//................ रोमांच हो आता है जब इस तरह का लिखा पढता हूँ ! ये एक पंक्ति बीसियों पर अकेले भारी ! बहुत सुन्दर गीत !
प्रकृति के बिम्बों से सनातन आनन्द को साझा करना आपकी विशिष्टता रही है आदरणीया. इस कड़ी में प्रस्तुत गीत सकारात्मकता के आयाम को कुछ और विस्तृत करता है. गीत की पंक्तियों को पढ़ता चला गया.
किन्तु इस पंक्ति के लिए तो बार-बार बधाई -
देखो जोग न ले अमराई,
उससे प्रीत जताती
रहना।
सादर
आदरणीय कल्पना जी बसंत और कोयल के माध्यम से बेहद सुंदर कामनाएं की गयी हैं ..चुनिन्दा शब्द,रस प्रबाह और प्राणी मात्र की खुशियों की कामना इस गीत को अत्यंत रोचक बना देते है ..हमेशा की तरह शानदार इस रचना पर मेरी तरफ से तहे दिल बधाई सादर ..
बसंत के सदर्भ में सुन्दर गीत रचना के लिए बधाई आदरणीया कल्पना रामानी जी
आ॰ गिरिराज जी, आ॰ ब्रह्मचारीजी, आ॰ अरुण अनंतजी, आ॰ श्याम नरेनजी, आ॰ कुंती जी, आप सबका रचना की सराहना करके प्रोत्साहित करने के लिए हार्दिक आभार
आदरणीया कल्पना जी बहुत ही सुन्दर सरस मधुर नवगीत लिखा है आपने पढ़कर आनंद आ गया बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online