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'अल्प विराम-पूर्ण विराम' अतुकांत ( गिरिराज भंडारी )

अल्प विराम – पूर्ण विराम  

********************

वो मै होऊँ या आप

छोटा मोटा विद्यार्थी

सबके अंदर जीता है ,

आवश्यक रूप से

और वो जानता भी है ,

जीते रहने की अहमियत

जीना भी चाहता है

पूर्णता तक,

या मौत तक ।

सीखने के क्रम में पूर्ण विराम नहीं होता

सब अल्प विराम ही होते हैं

क्योंकि ,

पूर्ण ज्ञान तो होता है

केवल ईश्वर में

या उस पूर्ण ज्ञानी को जान लेने में ।

वही भेजता है , देता है , लगाता है

पूर्ण हो जाने पर ,

पूर्ण विराम ।

एक बार , बस एक बार ,

बाक़ी सब अल्प विराम होते हैं ।

 

चंद अल्प विरामों को जोड़ कर

ज़िन्दा विद्यार्थी की गर्दन मरोड़ कर

बलात लगाये गये पूर्ण विराम

भ्रम तो देते हैं , वो भी

खुद को अधिक , दूसरों को कम

पूर्ण विराम का ,

मगर होते नही ॥

मर रहे विद्यार्थी को जीने दें भाई ॥

*******************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित   

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Comment

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Comment by गिरिराज भंडारी on March 26, 2014 at 5:24pm

आदरणीय सचिन भ्हाई रचना की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥

Comment by Sachin Dev on March 26, 2014 at 1:21pm

सादर प्रणाम आदरणीय गिरिराज जी.... बेहतरीन रचना बहुत ही गहरे सन्देश के साथ प्रेषित की आपने हार्दिक बधाई आपको ! 

कृपया ध्यान दे...

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