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सिखाते क्यों हमें हो तुम वही इतिहास की बातें
दिलों में घोलकर नफरत नये विश्वास की बातें
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बताओ घर बनेगा क्या हमारा आसमानों में
जमीनें छीन के करते सदा आवास की बातें
*
कहाँ से हो कठौती में हमारे गंग की धारा
बिठाई ना मनों में जब कभी रविदास की बातें
*
बहाकर अश्क भी यारो कहाँ दुख दूर होते हैं
गमों से पार पाने को करो परिहास की बातें
*
हमारे देवता जो हैं करम तक आ न पाये हैं
दिया पतझड़ हमेशा ही, कही मधुमास की बाते
*
हुआ होगा कभी मजनू जिसे था प्यार रूहों से
मगर इस युग चली आयी सदा सहवास की बातें
*
मुझे लगती नहीं अच्छी 'मुसाफिर’ फितरतें तेरी
अगर बरसात भी हो तो करोगे प्यास की बातें
मैलिक व अप्रकासित
लक्ष्मण धामी ’मुसाफिर’
Comment
आदरणीय भाई विजय जी ग़ज़ल कि प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद .
आदरणीय भाई आशुतोष जी ग़ज़ल कि प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार . .
आदरणीय भाई श्याम नारायण जी ग़ज़ल कि प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद .
आदरणीय भाई अखिलेश जी ग़ज़ल कि प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद .
behad khoobsoorat bhaavon kee khoobsoorat gazal....haardik badhaaee
गज़ल के भाव बहुत अच्छे लगे। बधाई।
बहाकर अश्क भी यारो कहाँ दुख दूर होते हैं
गमों से पार पाने को करो परिहास की बातें आदरणीय लक्ष्मण जी बेहतरीन ग़ज़ल के इस बेहतरी शेर के लिए तहे दिल बढ़ाई सादर
अच्छी ग़ज़ल की हार्दिक बधाई । |
बताओ घर बनेगा क्या हमारा आसमानों में
जमीनें छीन के करते सदा आवास की बातें........ बहुत खूब
कहाँ से हो कठौती में हमारे गंग की धारा
बिठाई ना मनों में जब कभी रविदास की बातें.......... बहुत सुंदर , अच्छा व्यंग है
हार्दिक बधाई लक्ष्मण भाई
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