नन्हीं नन्हीं
ख़वाहिशें जन्मी है
जैसे पतझड़ के बाद
नन्हीं कलियाँ
नन्ही कोपले
बड़े आग़ाज़ का
छोटा सा ख़ाका
बड़ी उम्मीदों की
छोटी सी किरन
उगने दो इन्हें
पनपने दो
कल की धूप के लिए
इनके साये बनने दो
करो तैयारी
खूबसूरत शुरुआत कि
सजाओ बस्ती
अपने जहान कि
के फिर
मौसम ने करवट ली है
फिर क़िस्मत ने दवात दी है
फिर खुशियों ने रहमत की है
जगने दो ख्वाहिशें
पकने दो ख्वाहिशें
के नया कुछ होने को है
परिवर्तन होने को है
इंतज़ार ख़त्म होने को है ……..
(मौलिक और अप्रकाशित)
प्रियंका.....
Comment
जितेन्द्र जी ....बहुत बहुत आभार आपका ....यूँही सराहते रहे ....आभार....
आदरणीय श्याम सर ...आपकी सराहना हेतु ...बहुत बहुत शुक्रिया ....
ख्वाहिशों के पनपने का स्वागत करती और सपने बुनती सुन्दर अभिव्यक्ति
उगने दो इन्हें
पनपने दो
कल की धूप के लिए
इनके साये बनने दो.............बहुत खूबसूरत ख़याल
इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक शुभकामनाएं
कहीं कहीं टंकण त्रुटियाँ दिख रही हैं, उन्हें दुरुस्त कर लीजिये
बहुत बढ़िया! मन में आशाओं का संचार करती हुई भावपूर्ण सुंदर कविता के लिए आपको हार्दिक बधाई प्रियंका जी/सादर
हर ख्वाहिश शुरू में एक कोंपल की तरह होती है जो समय के साथ आकार लेती है, बहुत खूबसूरती से आपने अपनी बात कही बहुत बहुत बधाई आपको इस खूबसूरत रचना के लिये
//करो तैयारी
खूबसूरत शुरुआत कि
सजाओ बस्ती
अपने जहान कि
के फिर
मौसम ने करवट ली है//
बहुत सुन्दर भाव पिरोए हैं। इस आशा संपन्न रचना के लिए साधुवाद, आदरणीया प्रियंका जी।
आदरणीया प्रियंका जी , मन मे आशा का संचार करती आपकी सुन्दर रचना के लिये आपको बधाइयाँ ॥
भावपूर्ण रचना , बधाई आपको ।
करो तैयारी
खूबसूरत शुरुआत कि
सजाओ बस्ती
अपने जहान कि
के फिर
मौसम ने करवट ली है
फिर क़िस्मत ने दवात दी है
फिर खुशियों ने रहमत की है
बहुत सुंदर सकारात्मक पंक्तियाँ, रचना की खूबसूरती को और अधिक बड़ा देती हुई. बधाई स्वीकारें आदरणीया प्रियंका जी
इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई |
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