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गजल......उड़ रहा मानव नियति आवाक है.......

गजल......
अरकान--2122 2121 212

जिन्दगी की तीव्र गति आवाक है।
सोच कर दिन-रात मति आवाक है।।

बस चुनावी दौर का सुरूर अब,
उड़ रहा मानव नियति आवाक है।

चॉंद छिप कर सोचता वो क्या करे,
बादलों का खौफ रति आवाक है।

पीर के पत्थर पिघल के सो गए,
नग्न पर्वत देख यति आवाक है।

नारि तुलसी-गौतमी औ द्राैपदी,
पूॅूछती हैं प्रश्न पति आवाक है।

घोर कलियुग पाप का आधार जब,
धर्म के पथ पर जयति आवाक है।

आज 'सत्यम' धर्मरत ये लिख रहे,
कर्म की काया सुमति आवाक है।

के0पी0सत्यम-मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 27, 2014 at 11:37am

आ0 गिरिराज भाईजी, जितेन्द्र भाईजी, शेखर भाईजी, कुन्ती मैमजी तथा सौरभ सर जी, आप सभी का बहुत-बहुत शुकिया, आभार सहित। सादर,


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 17, 2014 at 12:40am

आवाक क्या है ? ये अवाक है क्या ?

शेरों पर आपने काम किया है बधाई !

Comment by coontee mukerji on April 6, 2014 at 1:07pm

नारि तुलसी-गौतमी औ द्राैपदी,
पूॅूछती हैं प्रश्न पति आवाक है।....क्या बात है केवल जी आप हर बार सब को अवाक कर देते है..अति सुंदर.

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on April 5, 2014 at 10:18pm
अच्छी गजल हेतु बधाई।
आवाक

को
हम अब तक
अवाक ही जानते हैं
बाकी गुनीजनों से आश्वस्त हो लें
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 4, 2014 at 9:50pm

पीर के पत्थर पिघल के सो गए,
नग्न पर्वत देख यति आवाक है।...........बहुत खूब, विशेष रूप से बधाई स्वीकार करें आदरणीय केवल जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 4, 2014 at 3:00pm

आदरणीय केवल भाई , लाजवाब हिन्दी गज़ल कही है , हर शे र उम्दा हुये है ॥ आपको दिली बधाइयाँ ॥

नारि तुलसी-गौतमी औ द्राैपदी,
पूॅूछती हैं प्रश्न पति आवाक है।  -- बहुत खूब !! दिली दाद कुबूल करें ॥

आदरणीय , मेरे ख्याल से बह्र , 2122    2122   212  , होना चाहिये था , एक बार फिर सोच लीजियेगा ॥

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