न सोना न चांदी न धन ले गई
मुहब्बत मेरी बांकपन ले गई/१
हजारों फ़रिश्ते गये हारकर
मेरी जान तो गुलबदन ले गई/२
नई ताजगी है नई सुब्ह है
चलो! मौत मेरी थकन ले गई/३
न मशहूर होना खुदा के लिए
समंदर नदी की उफन ले गई/४
चलो बेच आएं बची रूह को
गरीबी हमारे बदन ले गई/५
न ताक़त रही ज़ोश भी कम गया
शिकस्ते वफ़ा सब अगन ले गई/६
लिबासें चमकती रहे इसलिए
सियासत शहीदी कफन ले गई/७
थका पर-कटा सा गया शाम को
हंसी बुलबुलों की चुभन ले गई/८
हुनर को सभी से छुपाकर रखा
इलाही उसे भी सुखन ले गई/९
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सर्वथा मौलिक व अप्रकाशित
अरकान: १२२ १२२ १२२ १२
Comment
आदरणीया coontee mukerji जी , हार्दिक धन्यवाद ! बहुत ही हर्षित हूँ आपका आशीष पाकर ! साथ बने रहिएगा महोदया ! सादर नमन सहित :)
हुनर को सभी से छुपाकर रखा
इलाही उसे भी सुखन ले गई/९ ...........वाह क्या बात है.
आदरणीय बसंत नेमा जी , बहुत बहुत धन्यवाद ! स्नेह देते रहिएगा महाशय ! सादर :)
आदरणीय बैद्यनाथ जी. बधाई स्वीकारें
मुहब्बत मेरी , बांकपन ले गई //
मुहब्बत , मेरा बांकपन ले गई //
समीक्षा की आकांक्षा के साथ , गुरुजनों से मार्गदर्शन चाहिए ! विनीत :)
सम्माननीया Dr.Prachi Singh जी , सादर प्रणाम ! बहुत बहुत धन्यवाद ज्ञापित कर रहा हूँ ..! आपका कहना वाजिब है ..इस मंच से मेरी कई ग़ज़लें निखरीं हैं ..! विनीत निवेदन है की मतले को सही करने में मेरी मदद करें ! आपकी मंत्रणा का सम्मान कर रहा हूँ ..और आगे ग़ज़ल को वैसे ही प्रेषित करूंगा, सधन्यवाद ! :)
सभी अश'आर बहुत सुन्दर हुए हैं
मतले में मुझे भी लगा कि "मुहब्बत मेरा बांकपन ले गयी" होना चाहिए
इस खूबसूरत ग़ज़ल पर हार्दिक दाद पेश है
जी आदरणीय जितेन्द्र 'गीत' जी , इसीलिए तो ये मंच, विशिष्ट है ! सादर :)
हम सब साथ-साथ ही है एक ही परिवार के सदस्य, जहाँ स्नेह, आशीर्वाद और बहुत अपनापन है. मुझे भी हमेशा आपके स्नेहिल मार्गदर्शन की आवश्यकता रहेगी आदरणीय बैद्यनाथ जी. :)) पुनः बधाई स्वीकारें
सादर !
आदरणीय CHANDRA SHEKHAR PANDEY जी ! बहुत बहुत शुक्रिया आपका ! आपकी उपस्थिति से हार्दिक खुशी हुई ! आपके मार्गदर्शन की निरंतर आवश्यकता है ! इस अमूल्य सुझाव का भी स्वागत करता हूँ ! विनीत नमन सहित :)
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