“अरे! रामेश्वर भाई..समझ नही आता क्या करें ? किस को क्या समझाएं ? किस दुःख में शामिल होने चलें?”
“सही कह रहे हो..तुम किशन भाई, वहां बेचारे दीनानाथ जी का शव अंतिम संस्कार की राह देख रहा है और उनके चारों बेटे आपस में बटवारे को लेकर झगड़ रहे है..”
" हाँ भाई..! रामेश्वर , दीनानाथ जी ने अपनी अर्थी के लिए चार काँधे तैयार किये थे, न जाने क्या कमी रह गई "
जितेन्द्र 'गीत'
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Comment
आपको रचना रुचिकर लगी, लेखनकर्म सार्थक हुआ आदरणीय गुमनाम जी, स्नेह बनाये रखियेगा
सादर!
रचना की सराहना हेतु आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय श्याम नारायण जी, स्नेहिल आशीर्वाद बनाये रखियेगा
सादर!
आप का कहना बिलकुल सही है आदरणीय अखंड जी, यह सब हकीकत ही है. आपका बहुत बहुत आभार, स्नेह बनाये रखियेगा
सादर!
रचना पर आपकी उपस्थिति से बहुत मनोबल मिलता है आदरणीया कुंती जी. आपका हार्दिक आभार, स्नेहिल आशीर्वाद बनाये रखियेगा
सादर!
न जाने क्या कमी रह गई "
आदरणीय जितेन्द्र जी
सादर
बढ़िया कथा
घर घर की व्यथा
बधाई
आदरणीय जितेन्द्र भाई,
बचपन में सही संस्कार न देने का परिणाम " अंतिम संस्कार " के समय सामने आया है !!!!!
चारो बेटे लड़ रहे, सब को धन से प्यार ।
लाश पड़ी है पिता की, कौन करे संस्कार ॥
सीख देती लघु कथा की हार्दिक बधाई ।
बहुत बढ़िया कहानी , हार्दिक बधाई आपको |
हकीकत की हकीकत
शायद इसी को दुनियादारी कहते हैं.सादर
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