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ऐसी ही होती है - माँ (तीन पंक्तियाँ)

मेरी मृत्यु नहीं हुई थी,

इसलिए बिछड़ी नहीं

हमेशा के लिए |

उसने मुझे रहने को

दे दिया बड़ा सा वृद्धाश्रम

कई लोगों के साथ में

कई सालों के लिए

घर से बस थोड़ी सी दूर|

जो रहा था

बस नौ महीने

अकेला

मेरी छोटी सी कोख में |

** मौलिक और अप्रकाशित

 

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 11, 2014 at 10:12am

गागर में सागर को चरितार्थ करती मार्मिक रचना प्रस्तुत करने के लिए बधाई श्री चंद्रेश जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 11, 2014 at 8:25am

आज के ज्वलंत मुद्दे को चंद शब्दों में बाखूबी बयाँ किया ,एक माँ/नारी/स्त्री की जीवन दशा का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया है  रचना में.बहुत- बहुत बधाई    

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 11, 2014 at 12:40am

अति मर्मस्पर्शी, आँखे नम हो गई .आपकी लेखनी को नमन आदरणीय चंद्रेश जी

Comment by annapurna bajpai on April 10, 2014 at 10:16pm

बहुत मार्मिक चित्रण , सुंदर रचना , बधाई आपको । 

Comment by वेदिका on April 10, 2014 at 10:02pm
बेबाकी से आपने यह नावक का तीर छोड़ा है, अत्यंत प्रभावशाली दंश है इसका!
आपको उच्च स्तरीय रचना पर हार्दिक शुभकामनाएं
सादर
Comment by coontee mukerji on April 10, 2014 at 9:36pm

बहुत मार्मिक चित्रण.....कितना दर्द इन चंद शब्दों में......

जो रहा था

बस नौ महीने

अकेला

मेरी छोटी सी कोख में |.....सादर

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