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सियासी जमातो! ग़दर कर दिया है,
वतन को लहू की नज़र कर दिया है।
निशाँ भी नहीं है कहीं रोशनी का,
के हर सू अँधेरा अमर कर दिया है।
डरी और सहमी है औलादे आदम,
ज़हन पर कुछ ऐसा असर कर दिया है।
नई नस्ले नफरत को पाने की धुन में,
रगों में रवाना ज़हर कर दिया है।
यहाँ कल तलक थी हज़ारों की बस्ती,
बताओ के उसको किधर कर दिया है।
ये वादा था सिस्टम बदल देंगे सारा,
मगर और देखो लचर कर दिया है।
गबन बेतहाशा किये इतने सारे,
के क़ौमी ख़ज़ाना सिफर कर दिया है।
निगाहों से अंधा व कानों से बहरा,
अपाहिज नगर का नगर कर दिया है।
"मौलिक एवं अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय इमरान भाई , देश की वर्तमान स्थिति पर खूब सूरत ग़ज़ल कही है , बहुत बहुत मुबारकबाद ,शानदार ग़ज़ल के लिये !!
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