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कुण्डलियाँ छंद - लक्ष्मण लडीवाला

बेशर्मी को ओढ़कर कायर हुआ समाज
चीखे अबला द्रोपदीकौन बचाए लाज
कौन बचाए लाजखुले घूमे उन्मादी
अपराधी आजादमिली ऐसी आजादी
कह लक्ष्मण कविराय,रहेगी जबतक नर्मी
बाहु बलों की जीतछले तब तक बेशर्मी |
(2)
त्रेता के रघुवर मिलेद्वापर में बन कृष्ण ,
यादव कुल में जन्म ले,शासन किया वितृष्ण|
शासन किया वितृष्ण,सभी का मान बढ़ाया
देकर के उपदेशधर्मं का पाठ पढ़ाया ||
कह लक्ष्मण कविरायधर्म जीवन अध्येता 
राम राज्य आदर्शयाद करते सब त्रेता |||
(3)
काशी काबा में सदाखिंचती क्यों तलवार
अमन-चैन खोकर सभीमरने को तैयार
मरने को तैयारकौम को रहे लड़ाते 
करे सियासत रोज,नहीं मिलजुल रह पाते 
कह लक्ष्मण कविरायशान्ति क्यों है आकाशी
पूजा और अजानचमन हो काबा काशी 

 

(मौलिक व् अप्रकाशित)

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 17, 2014 at 3:53pm

आप सही कह रही है आद. राजेश जी | इस छंद को पुनः देख कर संशोधित करता हूँ | ध्यान दिलाने के लिए शुक्रिया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 17, 2014 at 12:04pm

आदरणीय लक्ष्मण जी ---यादव कुल में जन्म ले, ख़त्म किया वितष्ण  यहाँ पंक्ति का अर्थ ही गलत हो रहा है --वितृष्ण =लोभ हीनता का भाव ,या वो भाव जीमे कोई लालच या प्यास ना हो ,ये अर्थ है वितृष्ण का ,अब देखिये ,विषम चरण में आपने क्या कहा ....बस इसी लिए भाव गड़बड़ है 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 17, 2014 at 11:16am

छंद पसंद करने के लिये आपका हार्दिक आभार श्री श्याम नारायण वर्मा जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 17, 2014 at 11:06am

छंद पर आपकी प्रतिक्रया से उत्साह वर्धन हुआ है आदरणीया राजेश कुमारी जी | आपका हार्दिक आभार 

यादव कुल में जन्म ले, ख़त्म किया वितष्ण = इसकी जगह "समाप्त किया वितृष्ण" किया जा सकता है |

Comment by Shyam Narain Verma on April 16, 2014 at 5:17pm

बहुत ही सुन्दर भावों से पूरित कुण्डलियां के लिए बहुत-बहुत बधार्इ स्वीकारें ............

 सादर...................


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 16, 2014 at 11:42am

बहुत सुन्दर सार्थक कुण्डलियाँ रची हैं आ० लक्ष्मण जी तीनो ही अच्छी हैं किन्तु पहले वाली सबसे ज्यादा पसंद आई ,आपकी निरंतर मेहनत और प्रयास सफल हो रहा है मेरी ढेर सारी बधाई एवं शुभकामनाये .

दूसरी कुण्डलिया में --यादव कुल में जन्म ले, ख़त्म किया वितष्ण|--सम चरण में एक मात्रा मुझे कम लग रही है -आपने वितृष्ण में ५ मात्राएँ ली हैं किन्तु मुझे कुछ संशय है ,हो सकता है मैं ही गलत सोच रही हूँ आप फिर भी आश्वस्त हो लें 

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