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कविता -

शरीर में चुभे हुए काँटे

जो शरीर को छलनी करते हैं;

वह टीस 

जो दिल की धड़कन

साँसों को निस्तेज करती है

 

यह तुम्हें आनंद नहीं देगी

प्रेम का कोरा आलाप नहीं यह

वासना में लिपटे शब्दों का राग नहीं

छद्म चिंताओं का दस्तावेज़ नहीं

इसे सुनकर झूमोगे नहीं

 

यह तुम्हें गुदगुदाएगी नहीं

सीधे चोट करेगी दिमाग पर

तड़प उठोगे

यही उद्देश्य है कविता का

 

रात के स्याह-ताल पर 

नृत्य करने वाले नर-पिशाचों के लिए

नहीं होती कविता

 

कविता पैदा करती है

जिंदा लोगों में झुरझुरी

एक सिहरन!

           - बृजेश नीरज 

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on May 6, 2014 at 6:20pm

आदरणीय बृजेश जी
जितनी तारीफ़ की जाए कम है..

यह तुम्हें आनंद नहीं देगी

प्रेम का कोरा आलाप नहीं यह

वासना में लिपटे शब्दों का राग नहीं

छद्म चिंताओं का दस्तावेज़ नहीं

इसे सुनकर झूमोगे नहीं

यह तुम्हें गुदगुदाएगी नहीं

सीधे चोट करेगी दिमाग पर

तड़प उठोगे

यही उद्देश्य है कविता का

कविता पैदा करती है

जिंदा लोगों में झुरझुरी

एक सिहरन!

सीधे दिल पे चोट करती है.. कविता का तो मतलब ही यही है..जो दिल से लिखी गयी हो..और पढ़ने के लिए भी तो वैसा ही दिल चाहिए.
सशक्त शब्दों का खूबसूरत तानाबाना.. तहे दिल से मुबारकबाद

Comment by बृजेश नीरज on May 1, 2014 at 10:45am

धर्मेन्द्र भाई आपका बहुत-बहुत आभार!

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 1, 2014 at 10:38am

अच्छी कविता है बृजेश जी,

निःसंदेह

कविता पैदा करती है

जिंदा लोगों में झुरझुरी

एक सिहरन!

बधाई स्वीकार करें।

Comment by बृजेश नीरज on May 1, 2014 at 10:35am

अरुण भाई आपका बहुत-बहुत आभार! आपके अनुमोदन ने बल दिया!

Comment by Arun Sri on May 1, 2014 at 10:28am

बहुत सुन्दर कविता भईया जी ! समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझने वाला कवि कविता का चरित्र चित्रण करेगा तो ऐसा ही करेगा ! सादर !

Comment by बृजेश नीरज on May 1, 2014 at 9:36am

आदरणीय सौरभ जी, मेरी 'कोशिश' को आपका अनुमोदन मेरे लिए तोषदाई है! आपका हार्दिक आभार!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 1, 2014 at 2:32am

इस कविता को पढ़ते हुए रात बारह बजे डीजे के अश्लील शोर पर झूमते, मताये ऐसे लोगों का स्मरण हो आता है, जिनके सामने नागरिक आचार-व्यहार और संहिता की बात करता हुआ कोई सज्जन खड़ा हो. कविता का हेतु स्पष्ट करती एक अच्छी कोशिश के लिए बधाई.

 

Comment by बृजेश नीरज on April 27, 2014 at 9:38pm

आदरणीया महिमा जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on April 27, 2014 at 9:38pm

आदरणीया प्राची जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by MAHIMA SHREE on April 24, 2014 at 9:15pm

आदरणीय ब्रिजेश जी ..बहुत -२ हार्दिक बधाई ...एक साँस में पढ़ गयी  कविता का सच तो यही होना चाहिए जो  समाज में . हर व्यक्ति में उन्नत विचारों का , परिवर्तन का बीज बो दे .. नयी दिशा दे .. सादर

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