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ग़ज़ल '' आओ सिक्का उछाल लेते हैं '' ( गिरिराज भंडारी )

2122     1212     22 /112

 

आज  फिर से  बवाल  लेते हैं

प्रश्न   कोई   उछाल  लेते  हैं

 

प्यास का हल कोई हमीं करलें

वो  समझने में  साल लेते  हैं

 

उनको आँखों में सिर्फ अश्क़ मिले

वो जो सब का मलाल लेते हैं

 

तेग वो ही चलायें, खुश रह लें

आदतन, हम जो ढाल लेते हैं

 

आज कश्मीर पर हो हल कोई

आओ  सिक्का उछाल लेते हैं  

 

भूख, उनके खड़ी रही दर पर

रिज़्क जो- जो हलाल लेते हैं

 

फिर उजाला मिलेगा सूरज से

बंट   रहा है ख़याल , लेते  हैं

***************************** 

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

 

Views: 1071

Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 2, 2014 at 12:55am

एक वैचारिक ग़ज़ल पर बार-बार साधु-साधु कर रहा हूँ. मतले से उठी आवाज़ लगातार सधती गयी है.

दिल से बधाई, आदरणीय .. .

लेकिन कश्मीर वालेे शेर में क्या कुछ कह रहे हैं, आदरणीय ??? 

मैं पूरे होशो-हवास में नम्रता के साथ पुरजोर विरोध दर्ज़ कराता हूँ. क्योंकि मुझे भान है कि आप जो कुछ कह रहे हैं उसका अर्थ आपको मालूम है. क्या आदरणीय आपकी ऐसी इच्छा है ?

किन्तु, ऐसा होना उस Plebiscite से भी अतुकान्त है जिसे भारतीय संविधान भी कड़े शब्दों में नकारता है. फिर मनमानेपन को सिक्का उछालने जैसे बिम्ब से बाँधा गया है ? यह भारतीय संविधान की मूलभावना और गरिमा के नितांत विरुद्ध है. इस तरह के किसी मंतव्य को इस भूभाग पर कोई स्थान नहीं है.

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 22, 2014 at 5:33pm

आदरणीय बड़े भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ।

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on April 21, 2014 at 10:13pm

छोटे भाई गिरिराज 

वर्तमान हालात और  सियासत पर अच्छा व्यंग्य , हार्दिक बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 21, 2014 at 8:36pm

आदरणीय अरुण अनंत भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 21, 2014 at 8:34pm

आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 21, 2014 at 8:33pm

आदरणीय शिज्जू भाई , आपकी सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 21, 2014 at 8:32pm

आदरणीया महेश्वरी जी , गज़ल की सराहना के लिये आपका आभार ॥

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 21, 2014 at 12:40pm

खूबसूरत अश’आर हुए हैं आदरणीय गिरिराज जी, दिली दाद कुबूल करें।

Comment by अरुन 'अनन्त' on April 21, 2014 at 12:03pm

वाह आदरणीय गिरिराज बहुत ही उम्दा ग़ज़ल क्या बात है एक एक अशआर बहुत ही खूबसूरत बन पड़े हैं ढेरों दिली दाद कुबूल फरमाएं.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 20, 2014 at 8:14pm

वाह बेहतरीन आदरणीय गिरिराज सर बहुत बहुत बधाई पूरी ग़ज़ल रवां है 

कृपया ध्यान दे...

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