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आज फिर से बवाल लेते हैं
प्रश्न कोई उछाल लेते हैं
प्यास का हल कोई हमीं करलें
वो समझने में साल लेते हैं
उनको आँखों में सिर्फ अश्क़ मिले
वो जो सब का मलाल लेते हैं
तेग वो ही चलायें, खुश रह लें
आदतन, हम जो ढाल लेते हैं
आज कश्मीर पर हो हल कोई
आओ सिक्का उछाल लेते हैं
भूख, उनके खड़ी रही दर पर
रिज़्क जो- जो हलाल लेते हैं
फिर उजाला मिलेगा सूरज से
बंट रहा है ख़याल , लेते हैं
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय गुमनाम भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका तहे दिल से आभार ॥
आज फिर से बवाल लेते हैं
प्रश्न कोई उछाल लेते हैं.....aajkl neta kar bhi rahen hai khub
वाह वाह !
वाे समझने में साल लेते हैं
क्या खूब कही । ढेराें दाद कबूल कीजिए अादरणीय गिरिराज जी ।
वाह क्या बात है....बधाई आपको गिरिराज जी.
आज फिर से बवाल लेते हैं
प्रश्न कोई उछाल लेते हैं
प्यास का हल कोई हमीं करलें
वो समझने में साल लेते हैं
वाह सर बहुत खूब बधाई स्वीकारें
आदरणीय दीपक भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ॥
आदरणीय मुकेश भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया !!
वाह जनाव क्या ख़ूब कहा
उनको आँखों में सिर्फ अश्क़ मिले
वो जो सब का मलाल लेते हैं
आदरणीय गिरिराज जी
ज़मीनी सच्चाई से जुड़े ख़यालों को तरजीह दिया है आपने इस ग़ज़ल में. .बहुत बहुत मुबारकबाद
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