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है ताब मुझे / एक ताज़ा तरही गज़ल

2122 1212 112
इश्क में जायेगी ये जान भी क्या
सब्र तोड़ेगा इम्तेहान भी क्या
.
ठोकरें हमको कर गयीं हैरां
आपने बदली है जबान भी क्या
.

गिर के नज़रों में कोई तुम ही कहो
जीत पायेगा ये जहाँन भी क्या
.
चाँद देखा था रात सहमा सा
'इस जमीं पर है आसमान भी क्या'
.
काट दे पर मेरे है ताब मुझे
रोक पायेगा तू उड़ान भी क्या
.
फिर मुझे प्यार पर यकीन हुआ
नर्म दिल में तेरा निशान भी क्या
.
एक जुम्बिश हुयी है दिल में कहीं
ज़िक्र में आई मेरी जान भी क्या
.
मौलिक/ अप्रकाशित

संशोधित

Views: 1064

Comment

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Comment by वेदिका on July 8, 2014 at 10:11am
ग़ज़ल आपका ध्यान खीँच सकी, गज़ल की रचनात्मकता सार्थक हुयी|
आपका अत्यंत आभार आ० सौरभ जी!
सादर वेदिका!!

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 6, 2014 at 11:52pm

आपकी इस ग़ज़ल ने पाठकों का बरबस ध्यान खींचा है. बधाई और शुभाकामनाएँ

Comment by वेदिका on June 19, 2014 at 5:30pm

गज़ल अनुमोदन के लिए आभार आ० विजय मिश्र जी!

Comment by विजय मिश्र on June 19, 2014 at 5:25pm
एक अच्छी गजल ,साधुवाद गीतिकाजी |
Comment by वेदिका on June 19, 2014 at 5:15pm

आभार आदरणीय विजय जी!

सादर!

Comment by vijay nikore on June 19, 2014 at 12:58pm

बहुत ही अच्छी गज़ल है, बधाई आदरणीया गीतिका जी।

Comment by वेदिका on June 18, 2014 at 10:15pm

ह्रदयतल से आभार व्यक्त करते हुये आपके  कथन से सोलह आने सहमति व्यक्त करती हूँ| आशा ही जीवंत है|

रचना पर आपके आशीष के प्रति कृतज्ञ हूँ आदरणीया कुंती दी!

सादर वेदिका  

Comment by वेदिका on June 18, 2014 at 10:10pm

"आपका आभार व्यक्त करती हूँ आ० gumnaam pithoragarhi जी!

सादर

Comment by coontee mukerji on June 18, 2014 at 10:09pm

फिर मुझे प्यार पर यकीन हुआ
नर्म दिल में तेरा निशान भी क्या....वाह.बहुत सुंदर....जीवन में आशावान होना बहुत ज़रूरी है.सादर

Comment by वेदिका on June 18, 2014 at 10:09pm

"आपका आभार व्यक्त करती हूँ आ० मीना दीदी! आपके स्नेह से मुझे संबल मिला! सादर"

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