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यूँ ही सोचा ज़माने की रविश भी जान ली जाये - ग़ज़ल

1222/ 1222/ 1222/ 1222

यूँ ही सोचा ज़माने की रविश भी जान ली जाये

पसे तस्वीर सूरत किसकी है पहचान ली जाये               पसे तस्वीर= तस्वीर के पीछे

 

ज़रा देखूँ कि सच कितना है तेरे इन दिखावो में

चलो कुछ देर को तेरी कही भी मान ली जाये         

 

कभी तो आप अपने तज़्रिबे से तौलें सच्चाई

ज़रूरी तो नहीं है हाथ में मीज़ान ली जाये                    मीज़ान =तराजू

 

नहीं लगती मुझे अनुकूल मौसम की तबीयत क्यूँ

बरस जायें न ओले जल्द ही छत तान ली जाये

 

घिरे हैं आफतों से इन दिनों अंजाम जो भी हो

हर इक दम सामना करने की दिल में ठान ली जाये

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by शिज्जु "शकूर" on May 20, 2014 at 6:42pm

आदरणीय सौऱभ सर रचना की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार
मैंने गलती सुधार ली है बहुत बहुत शुक्रिया स्नेह यूँ ही बनाये रखें


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 20, 2014 at 3:37am

वाह वाह शिज्जू भाईजी. दिल से दाद कुबूल करें

कुछ इक बातों.. नहीं कुछ इक बात कहना सही है. 

विश्वास है, आप इस व्याकरणीय दोष को एक बार देख कर मुझे भी सूचित करेंगे.  ताकि मैं भी संयत हो सकूँ.

शुभ-शुभ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 7, 2014 at 8:58pm

आपका हार्दिक आभार भाई आशीष जी

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on May 5, 2014 at 8:55pm

वाह, खूबसूरत ग़ज़ल कही है भाई शिज्जु जी  !!

दाद क़ुबूल कीजिये !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 5, 2014 at 1:45pm

आदरणीय अरुण सर आपका हार्दिक  आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on May 4, 2014 at 9:19pm

कुछ इक बातों को अपने तज़्रुबे से तौल के देखें

ज़रूरत क्या कि अपने हाथ में मीज़ान ली जाये

वाह, वाह !!!!!!!!!!!!!!!!! उम्दा गज़ल....बधाई.................

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 4, 2014 at 3:55pm

आ0 शिज्जू भाईजी,  मेरे भी ख्याल में कुछ ऐसा ही विचार आया था।  मार्गदर्शन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद सहित आपका हार्दिक आभार। सादर,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 4, 2014 at 12:44pm

आपका हार्दिक आभार  आदरणीय केवल प्रसाद  जी आप सही हैं कुछ और हर की मात्रा गिरा के नही पढ़ा जा सकता दरअस्ल मैंने अलिफ वस्ल का प्रयोग किया है जैसे कुछिक, हरिक 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 4, 2014 at 11:44am

आ0 शिज्जू भाईजी, वाह बहुत खूब गजल कही है। हार्दिक बधाई स्वीकारें। किन्तु भाईजी कृपया मार्गदर्शन करे कि क्या 'कुछ' और 'हर' को गिरा कर 1 मात्रा में पढ़ा जा सकता है। सादर,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 4, 2014 at 11:39am

आदरणीया कुंती जी रचना की सराहना के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया

कृपया ध्यान दे...

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