22122
लाचार हो क्या?
सरकार हो क्या?
छुट्टी पे छुट्टी,
इतवार हो क्या?
छूते ही ज़ख़्मी,
औजार हो क्या?
बेचा है खुद को,
बाज़ार हो क्या?
तारीफ कर दूँ,
अशआर हो क्या?
खुद से ही बातें,
बीमार हो क्या?
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राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी। … सादर
हार्दिक आभार आदरणीय भुवन जी। … सादर
ग़ज़ब ! मज़ा आगया, राम शिरोमणि जी. कहन में सान्द्रता अच्छी लगी.
इसे कहते है गागर में सागर, बधाई कबूल करे.
उत्साह वर्धन हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय आशुतोष जी। … सादर
उत्साह वर्धन हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय गिरिराज जी। … सादर
उत्साह वर्धन हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय गणेश जी। … सादर
बहुत बहुत आभार भाई अरुण शर्मा जी। … सादर
बहुत बहुत आभार भाई जीतेन्द्र जी। … सादर
आदरणीय राम जी ..इतने छोटी बहर पे जिस शानदार तरीके से आपने ग़ज़ल लिखी है केबिले तारीफ़ है ..हर शेर बेहतरीन है ..आपको इस शानदार रचना के तहे दिल बधाई ..सादर
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