मेरी अगर माँ ना होती
मैं कहाँ से होता,
किसकी अंगुली पकड़ के चलता
किसका नाम लेकर रोता.
चलना फिरना हँसना गाना
तेरी भांति माँ मुस्काना
प्रेम के एक एक आखर
पग पग संस्कार सिखलाना
गोदी में सिर रखकर आखिर
निर्भीक कहाँ मैं सोता .
दुनियांदारी के कथ्य अकथ्य
जीवन यात्रा के सत्य असत्य
रंगमंच के सारे पक्ष
कुछ प्रत्यक्ष, कुछ नेपथ्य
राजा रानी के किस्सों संग
मन माला में कौन पिरोता..
ये जो वायु, आती जाती है
बल, रूप, यौवन सजाती है
दुनियां भर के सारे सुख
नित्य नवीन दिखलाती है
ये तो ऋण तुम्हारा है माँ
बस रहता हूँ मैं ढोता.
मेरी अगर माँ ना होती
मैं कहाँ से होता.
... नीरज कुमार नीर
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आ. भाई अरुण जी आपका बहुत बहुत आभार ...
आदरणीया राजेश कुमारी जी आपको रचना पसंद आयी, मुझे अतीव प्रसन्नता हुई ..
आ. भाई जीतेंद्र गीत जी आपका बहुत धन्यवाद ..
आदरणीया मीना पाठक जी बहुत आभार आपका .
आदरणीय लक्ष्मण धामी साहब आपका आभार व्यक्त करता हूँ ..
आदरणीय शिज्जू शकूर साहब.. रचना आपको पसंद आयी , आपका बहुत शुक्रगुजार हूँ.
आदरणीया महिमाश्री जी आपका बहुत धन्यवाद ..
माँ को समर्पित बहुत मधुर भावपूर्ण रचना नीरज भाई दिल से बधाई आपको
माँ को समर्पित बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति. बधाई आपको.
माँ को समर्पित बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना, बधाई स्वीकारें आदरणीय नीरज जी
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