हमारे जीवन मूल्य
सरेआम नीलाम हो जायेंगें
हम फिर से गुलाम हो जायेंगें ..
स्वतंत्रता का काल स्वर्णिम
तेजी से है बीत रहा
हासिल हुआ जो मुश्किल से
तेजी से है रीत रहा.
धरी रह जाएगी नैतिकता,
आदर्श सभी बेकाम हो जाएँगे .
हम फिर से गुलाम हो जायेंगे ..
कहों ना ! जो सत्य है.
सत्य कहने से घबराते हो
सत्य अकाट्य है , अक्षत
छूपता नहीं छद्मावरण से
जो प्राचीन है , धुंधला,
गर्व उसी पर करके बार बार दुहराते हो.
टूटे हुए कलश, भंजित प्रतिमा
ध्वस्त अभिमान, लूटी स्त्रियाँ
नत सर .
ये इतिहास हैं.
ये सत्य हैं, अकाट्य , अक्षत,
गर्व करो या स्वीकारो
या उठा कर फ़ेंक आओ इन पन्नो को
अरब सागर की अतल गहराइयों में.
पर सत्य नहीं बदलेगा
सत्य नग्न होता है.
सत्य पे झूठ के आवरण
नाकाम हो जायेंगें.
हम फिर से गुलाम हो जायेंगे ..
नैतिकता और कायरता में
पुरुषार्थ भर का अंतर है
कायरों की नैतिकता
चलती नहीं अनंतर है.
सूरज को हाथों से ढकने के यत्न
नाकाम हो जायेंगे
हम फिर से गुलाम हो जायेंगे ..
……… Neeraj kumar neer
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
हालात पर अफ़सोस करते उलाहने देने और परिस्थितियों पर प्रतिक्रिया से इतर यदि कुछ सदिश करते निर्देश भी निहित होते तो रचना की ऊर्जा सकारात्मक ग्राह्यता रखती..
वैसे कथ्य मनस को उद्वेलित करने में सक्षम है
प्रस्तुत रचना पर हार्दिक बधाई
सुन्दर भावों से सजी इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय नीरज जी
बहुत ही सुन्दर भाव हैं।
एक सुझाव ... यदि रचना को अनुच्छेदों में विभक्त करते तो इसे पढ़ने का आनन्द और भी बढ़ जाता।
इस अच्छी रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई।
आ जीतेन्द्र भाई बहुत बहुत आभार आपका..
आपका हार्दिक आभार आदरणीया कुंती मुख़र्जी जी .
स्वतंत्रता का काल स्वर्णिम
तेजी से है बीत रहा
हासिल हुआ जो मुश्किल से
तेजी से है रीत रहा.
धरी रह जाएगी नैतिकता,
आदर्श सभी बेकाम हो जाएँगे .
हम फिर से गुलाम हो जायेंगे .
आदरणीय नीरज जी ..गीत के माध्यम से व्यक्त की गयी चिंता जायज है ..सचमुच दुखद है इस तरह सतत होता नैतिक मूल्यों का अवमूल्यन ..सादर
आदरणीय नीरज भाई , जीवन मूल्यों मे लगातार आते गिराव को देखते हुये आपकी आशंका निर्मूल नही है । सुन्दर रचना के लिये आपको बधाई !!
देश की बदलती परिस्थितियों पर सुन्दर रचना की है आदरणीय नीरज कुमार 'नीर' जी सादर बधाई स्वीकारें.
बहुत गहरे व् दूरदर्शी दृष्टिकोण से रची इस रचना पर आपको बहुत बहुत बधाई आदरणीय नीरज जी
हम फिर से गुलाम हो जायेंगे ..
नैतिकता और कायरता में
पुरुषार्थ भर का अंतर है
कायरों की नैतिकता
चलती नहीं अनंतर है.
सूरज को हाथों से ढकने के यत्न
नाकाम हो जायेंगे
हम फिर से गुलाम हो जायेंगे .....बहुत सुंदर . एक दूर्दर्शिता का प्रमाण दिया है अपनी रचना में. अनेक शुभकामानाएं.....सादर.
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