For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तुम मेरी सम्पूर्णता की बानगी हो (ग़ज़ल 'राज')

2122  2122   2122 

तुम ग़ज़ल मेरी मुहब्बत में पगी हो

फूल, कलियाँ,वल्लरी सी ताज़गी हो

 

तुमको पाकर ये मकाँ घर हो गया है

तुम मेरी सम्पूर्णता की बानगी हो

 

इन तेरी साँसों से महके प्रेम उपवन

रूप यौवन में बसी इक सादगी हो

 

पास आकर भी नहीं तुम पास मेरे

दूरियों से क्यूँ न फिर नाराज़गी हो

 

बिन तेरे ये दिल धड़कना छोड़ देता   

आज कहता हूँ मेरी तुम जिंदगी हो

 

प्यार पाकर दिल नहीं भरता ये मेरा

झील होकर अनबुझी इक तिश्नगी हो

 

दिल बिछा दूँ मैं जहाँ तू पाँव रख दे

इससे बढ़कर क्या मेरी दीवानगी हो

 

 (मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 947

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 18, 2014 at 12:19pm

मुकेश वर्मा  जी  आपको ग़ज़ल पसंद आई ,तहे दिल से आभार आपका |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 18, 2014 at 12:18pm

आ0 लक्ष्मण धामी भाइ जी  आपको ग़ज़ल पसंद आई ,तहे दिल से आभार आपका |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 18, 2014 at 12:17pm

भुवन निस्तेज जी आपको ग़ज़ल पसंद आई ,तहे दिल से आभार आपका |

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on May 17, 2014 at 11:32am

तुमको पाकर ये मकाँ घर हो गया है

तुम मेरी सम्पूर्णता की बानगी हो ||  वाह !!

पास आकर भी नहीं तुम पास मेरे

दूरियों से क्यूँ न फिर नाराज़गी हो ||  वाह, बहुत खूब !!

वाह, सुन्दर ग़ज़ल आदरणीया राजेश जी  !!

Comment by अरुन 'अनन्त' on May 16, 2014 at 12:08pm

अहा!!!! अहा!!!! आनंद आ गया आदरणीया एक एक अशआर इतनी सुन्दरता से कहे हैं कि वाह मजा आ गया दिल से भर भर कर एक एक शेअर पर ढेर सारी बधाइयाँ.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 15, 2014 at 6:50pm

आदरणीया राजेश जी , खूबसूरत गज़ल कही है , आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

दिल बिछा दूँ मैं जहाँ तू पाँव रख दे

इससे बढ़कर क्या मेरी दीवानगी हो --   वाह !!

Comment by ram shiromani pathak on May 15, 2014 at 5:28pm

अहा। . अहा बहुत ही  सुन्दर प्रस्तुति आदरणीया राजेश कुमारी  जी ।बहुत बहुत बधाई आपको। सादर 

Comment by gumnaam pithoragarhi on May 15, 2014 at 4:32pm

तुमको पाकर ये मकाँ घर हो गया है

तुम मेरी सम्पूर्णता की बानगी हो

 

प्यार पाकर दिल नहीं भरता ये मेरा

झील होकर अनबुझी इक तिश्नगी हो

 बहुत अच्छी गज़लें कही हैं बधाई स्वीकारें

 

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on May 15, 2014 at 1:01pm

तुमको पाकर ये मकाँ घर हो गया है

तुम मेरी सम्पूर्णता की बानगी हो

बिन तेरे ये दिल धड़कना छोड़ देता  

आज कहता हूँ मेरी तुम जिंदगी हो.................बहुत बहुत उम्दा..क़ाबिले तारीफ़

दिल बिछा दूँ मैं जहाँ तू पाँव रख दे

इससे बढ़कर क्या मेरी दीवानगी हो

आदरणीया राजेश जी
बहुत संजीदगी से लिखा है आपने.. बहुत अच्छा लगा ये ग़ज़ल पढ़कर

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 15, 2014 at 10:56am

तुमको पाकर ये मकाँ घर हो गया है

तुम मेरी सम्पूर्णता की बानगी हो... बहुत खूब आदरणीय राजेश बहन , पूरी ग़ज़ल के लिए डैड कबूलें .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"वाह। आप तो मुझसे प्रयोग की बात कह रहे थे न।‌ लेकिन आपने भी तो कितना बेहतरीन प्रयोग कर डाला…"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय गिरिराज जी।  नीलेश जी की बात से सहमत हूँ। उर्दू की लिपि…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. अजय जी "
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"मोर या कौवा --------------- बूढ़ा कौवा अपने पोते को समझा रहा था। "देखो बेटा, ये हमारे साथ पहले…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"जी आभार। निरंतर विमर्श गुणवत्ता वृद्धि करते हैं। अपनी एक ग़ज़ल का मतला पेश करता हूँ। पूरी ग़ज़ल भी कभी…"
Saturday
Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"क़रीना पर आपके शेर से संतुष्ट हूँ. महीना वाला शेर अब बेहतर हुआ है .बहुत बहुत बधाई "
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"हार्दिक स्वागत आपका गोष्ठी और रचना पटल पर उपस्थिति हेतु।  अपनी प्रतिक्रिया और राय से मुझे…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"आप की प्रयोगधर्मिता प्रशंसनीय है आदरणीय उस्मानी जी। लघुकथा के क्षेत्र में निरन्तर आप नवीन प्रयोग कर…"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"अच्छी ग़ज़ल हुई है नीलेश जी। बधाई स्वीकार करें।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"मौसम का क्या मिज़ाज रहेगा पता नहीं  इस डर में जाये साल-महीना किसान ka अपनी राय दीजिएगा और…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service