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छीन सकता है भला कोई किसी का क्या नसीब?
आज तक वैसा हुआ जैसा कि जिसका था नसीब।
माँ तो होती है सभी की, जो जगत के जीव हैं,
मातृ सुख किसको मिलेगा, ये मगर लिखता नसीब।
कर दे राजा को भिखारी और राजा रंक को,
अर्श से भी फर्श पर, लाकर बिठा देता नसीब।
बिन बहाए स्वेद पा लेता है कोई चंद्रमा,
तो कभी मेहनत को भी होता नहीं दाना नसीब।
दोष हो जाते बरी, निर्दोष बन जाते सज़ा,
छटपटाते मीन बन, जिनका हुआ काला नसीब।
दीप जल सबके लिए, पाता है केवल कालिमा,
पर जलाते जो उसे, पाते उजालों का नसीब।
‘कल्पना’ फिर द्वेष कैसा, दूसरों के भाग्य से,
क्यों न शुभ कर्मों से लिक्खें, हम स्वयं अपना नसीब।
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय मित्रों, राम शिरोमणि जी, शिज्जु जी, उमेशजी, अरुण अनंतजी, जितेंद्र जी, आशुतोष मिश्राजी, गिरिराज जी, मदन मोहनजी, श्याम नरेनजी, भुवन निस्तेज जी, लक्ष्मण धामी जी, आ॰ प्राची जी, कुंती जी, प्रिय मुकेशजी, विंदु बाबू,राजेश जी, आप सबका उत्साह वर्धन के लिए हार्दिक आभार।
बिन बहाए स्वेद पा लेता है कोई चंद्रमा,
तो कभी मेहनत को भी होता नहीं दाना नसीब।---vaah vaah
bahut sundar ghazal kahi hai kalpna didi bahut saari badhaai aapko.
छीन सकता है भला कोई किसी का क्या नसीब?
आज तक वैसा हुआ जैसा कि जिसका था नसीब।
माँ तो होती है सभी की, जो जगत के जीव हैं,
मातृ सुख किसको मिलेगा, ये मगर लिखता नसीब।
सुन्दर ,खूबसूरत गज़ल
आदरणीया कल्पना जी, खूब सूरत गज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥
कर्म और नसीब का बढिया तालमेल गढ़ती हुई सुंदर गज़ल बनी है आदरणीया कल्पना दी..
आपको हार्दिक बधाई इस सार्थक रचना के लिए।
सादर
कर दे राजा को भिखारी और राजा रंक को,
अर्श से भी फर्श पर, लाकर बिठा देता नसीब।
बिन बहाए स्वेद पा लेता है कोई चंद्रमा,
तो कभी मेहनत को भी होता नहीं दाना नसीब।....आदरणीया कल्पना जी ..आपकी रचनाओं में हमेशा ही कोई न कोई सन्देश होता है ..वाकई सब नसीब की ही बात है ..सादर बधाई के साथ
बहुत खुबसूरत गजल कही आपने आदरणीया कल्पना जी, हार्दिक बधाई स्वीकार करें
वाह आदरणीया वाह बहुत ही सुन्दर सार्थक सन्देश देती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने दिली से बधाइयाँ स्वीकारें.
बहुत सुन्दर अशआर कहे हैं वाहहहहहह
खूबसूरत ग़ज़ल हुई है बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर
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