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मेरा देश महान/तीन कुण्डलिया छंद/कल्पना रामानी

1) 

सोने की चिड़िया कभी, कहलाता था देश

नोच-नोच कर लोभ ने, बदल दिया परिवेश।   

बदल दिया परिवेश, खलों ने खुलकर लूटा। 

भरे विदेशी कोष, देश का ताला टूटा।

हुई इस तरह खूब, सफाई हर कोने की,

ढूँढ रही अब डाल, लुटी चिड़िया सोने की।

2)

पावन धरती देश की, कल तक  थी बेपीर।

कदम कदम थीं रोटियाँ, पग पग पर था नीर।

पग पग पर था नीर, क्षीर की बहतीं नदियाँ,

निर्झर थे गतिमान, रही हैं साक्षी सदियाँ।

सोचें इतनी बात, आज क्यों सूखा सावन?

झेल रही क्यों पीर, देश की धरती पावन।

3)

कोयल सुर में कूकती, छेड़ मधुरतम तान।

कूक कूक कहती यही, मेरा देश महान।

मेरा देश महान, सुनाती है जन जन को,

रोक वनों का नाश, कीजिये रक्षित हमको।

कहनी इतनी बात, अगर वन होंगे ओझल।

कैसे मीठी तान, सुनाएगी फिर कोयल।

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by कल्पना रामानी on May 23, 2014 at 8:10pm

आपका सादर धन्यवाद आदरणीय सत्यनारायन जी

Comment by Satyanarayan Singh on May 22, 2014 at 10:25pm

इस शानदार प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीया कल्पना रामानी जी 

Comment by कल्पना रामानी on May 22, 2014 at 7:53pm

आदरणीय सौरभ जी, आपकी उपस्थिति से रचना का मान बढ़ जाता है। आपका  सादर धन्यवाद

Comment by कल्पना रामानी on May 22, 2014 at 7:51pm

आदरणीया प्राची जी, आपका कहना बिलकुल सही है, कभी कभी ध्यान चूक जाता है। इंगित करने  के लिए बहुत धन्यवाद आपका, सही शब्द मिलते ही संशोधित कर दूँगी।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 14, 2014 at 4:38pm

सार्थक काव्य रचना के लिए बधाई आदरणीया.
सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 6, 2014 at 8:25am

आदरणीया कल्पना जी 

भारत देश जो कभी सोने की चिड़िया कहलाता था, किस तरह लोभियों नें इसे लूट डाला ....साथ ही पावन नदियाँ , दूध दही की सम्पन्नता, आज सब लुप्त से हो गए हैं, कोयल के माध्यम से भी आपने वन संरक्षण की बहुत ख़ूबसूरत बात कही है 

इस सार्थक प्रस्तुति पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये 

देश और ऐश की तुकांतता पर आपका ध्यान अवश्य ही चाहूंगी \

सादर 

Comment by कल्पना रामानी on May 3, 2014 at 9:03pm

आ॰ गिरिराज जी, आशुतोष जी, अखिलेश जी, आशीष जी,आदरणीया राजेश जी, कुंती जी, प्रिय अन्नपूर्णाजी, कल्पना जी,आप सबका प्रोत्साहित करती हुई टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार

Comment by annapurna bajpai on May 2, 2014 at 1:53pm

बहुत सुंदर कुण्डलिया छंद बधाई आपको आ0 कल्पना दी । 

Comment by coontee mukerji on May 2, 2014 at 3:11am

बहुत सुंदर एवं मधुर रचना. कलपनाजी. हार्दिक बधाई.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 1, 2014 at 5:15pm

आदरणीया कलपना जी , तीनो कुंडलिया बहुत अच्छी रचीं है , आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

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