मात्रिक छंद
हमसे रखो न खार, किताबें कहती हैं।
हम भी चाहें प्यार, किताबें कहती हैं।
घर के अंदर एक हमारा भी घर हो।
भव्य भाव संसार, किताबें कहती हैं।
बतियाएगा मित्र हमारा नित तुमसे,
हँसकर हर किरदार, किताबें कहती हैं।
खरीदकर ही साथ सहेजो, जीवन भर,
लेना नहीं उधार, किताबें कहती हैं।
धूल, नमी, दीमक से डर लगता हमको,
रखो स्वच्छ आगार, किताबें कहती हैं।
कभी न भूलो जो संदेश मिले हमसे,
ऐसा हो इकरार, किताबें कहती हैं।
सजावटी ही नहीं सिर्फ हमसे हर दिन,
करो विमर्श विचार, किताबें कहती हैं।
सैर करो कोने कोने की खोल हमें,
चाहे जितनी बार, किताबें कहती हैं।
रखो ‘कल्पना’ हर-पल हमें विचारों में,
उपजेंगे सुविचार, किताबें कहती हैं।
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
सादर आभार, आदरणीया कल्पनाजी.
इतनी व्यस्तताओं के बीच सचमुच कोई और परेशानी तो सब गड़बड़ कर ही देती है। संतुलन बनाए रखना मुश्किल हो जाता है, फिर भी आप काफी समय साहित्य-सेवा को समर्पित कर देते हैं जो वाकई स्तुत्य है। आपकी बधाई पाकर हार्दिक प्रसन्नता हुई, आपका बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय सौरभ जी
आपकी इस प्रस्तुति को मैं पहले ही देख गया था आदरणीया किन्तु एक-एक दिन कर विलम्ब होता गया.
ऊपर से दौरे पर होने के कारण नेट का झटके में ही प्रयोग हो पारहा है. बार-बार का डिस्कनेक्शन झल्लाहट का भी कारण बनता है.
खैर, हार्दिक बधाई स्वीकारें, आदरणीया..
सादर
गजल की सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद प्रिय प्राची जी
किताबों की दुनिया ही निराली है....
आपने उस दुनिया को सुन्दरता से छुआ है और प्रस्तुत किया है..
इस सार्थक प्रस्तुति पर मेरी हार्दिक बधाई आदरणीया कपना जी
महनीया
जब मैंने विचार किया तो मेरा भ्रम स्वयं दूर हो गया i वस्तुतः यह रचना गजल ही है मै व्यर्थ ही मात्रिक छंदों में भटक गया i कुहासा दूर करने के लिये आपको शत-शत धन्यवाद i आदरणीया i
आदरणीय गोपाल नारायण जी, गजल की सराहना के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद। यह बहर 2222वाली प्रचलित बहर ही है जिसे अब मात्रिक बहर में कहने की मान्यता मिल चुकी है। वैसे भी इसमें शाश्वत गुरु और लघु का नियम पालन नहीं होता था, दो लघु को भी गुरु मान लिया जाता था जो कि अन्य किसी बहर में मान्य नहीं है, अब हम 22को 1111,121,211,112मात्राओं के अनुसार लिख सकते हैं, बस प्रवाह बाधित नहीं होना चाहिए। मैंने 22 मात्राओं का एक मिसरा लिया है। इसीलिए इसे मात्रिक छंद या बहर कहा जाने लगा है/सादर
आदरणीय गिरिराज जी, विजय प्रकाश जी, जितेंद्र गीतजी, विजय निकोरजी, सुशील जी,लक्ष्मण धामी जी, शिज्जु जी, गोपाल नारायण जी, प्रिय गीतिका जी, महिमा जी, कुंती जी, राजेश जी, आप सबकी गजल पर उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से अपार हर्ष हुआ। आप सबका हार्दिक धन्यवाद
आदरणीया कल्पना जी , किताबों के माध्यम से बहुत सुन्दर संदेश देती आपकी गज़ल के लिये आपको बधाइयाँ ॥
कभी न भूलो जो संदेश मिले हमसे,
ऐसा हो इकरार, किताबें कहती हैं।
सजावटी ही नहीं सिर्फ हमसे हर दिन,
करो विमर्श विचार, किताबें कहती हैं।... बहुत सुंदर सन्देश देती प्रस्तुति आदरणीया कल्पना दी हार्दिक बधाई आपको सादर
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