इन्द्र्देव ने भेज दिया है
धरती को पैगाम।
बूँदों से है लिखी इबारत।
बदलेगी जन-जन की किस्मत।
मानसून इस बार करेगा
सबके मन की पूरी हसरत।
भर चौमासा घन बरसेंगे
झूम झूम अविराम।
हरषेगा खेतों में हँसिया।
अन्न बीज रोपेगा हरिया।
उड़ जाएगी निकल नीड़ से,
बेबस हो महँगाई चिड़िया।
हल बैलों सँग गीत माहिया,
गाएगा सुखराम।
होंगे व्यस्त घरों के कोने।
बाँटेंगे भर दूध भगोने।
इसकी-उसकी टंगी मथानी,
उतरेगी फिर दही बिलोने।
तवा तपेली रोज़ तपेंगे,
घर-घर सुबहो-शाम।
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आपकी रचना पर उपस्थिति से उत्साह दोगुना हो जाता है आदरणीय सौरभ जी, मन से धन्यवाद आपका
होंगे व्यस्त घरों के कोने।
बाँटेंगे भर दूध भगोने।
इसकी-उसकी टंगी मथानी,
उतरेगी फिर दही बिलोने।
तवा तपेली रोज़ तपेंगे,
घर-घर सुबहो-शाम।
ग़ज़ब ! ग़ज़ब ! इस आशावादिता को सादर प्रणाम..
मुग्ध हुआ मन आदरणीया कल्पनाजी.
सादर
आपकी प्रशंसा से तो मेरा भी मन झूम उठता है प्रिय प्राची जी, उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद
वाह वाह
बहुत ही प्यारा नवगीत आदरणीया कल्पना रामानी जी
बरखा के आने की दस्तक पर मन झूम उठा बहुत सुन्दर शब्दचित्र उकेरते इस नवगीत के साथ
बहुत बहुत बधाई
आदरणीय जवाहरलाल जी हार्दिक आभार
प्रिय गीतिका जी, बहुत धन्यवाद आपका
आदरणीय विजय मिश्र जी, प्रोत्साहित करती हुई टिप्पणी के लिए हार्दिक धन्यवाद
रषेगा खेतों में हँसिया।
अन्न बीज रोपेगा हरिया।
उड़ जाएगी निकल नीड़ से,
बेबस हो महँगाई चिड़िया।
हल बैलों सँग गीत माहिया,
गाएगा सुखराम।
मुझे ये पंक्तियाँ बहुत ही अच्छे लगी, सादर बधाई!
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