For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गोल रोटी/लघुकथा/कल्पना रामानी

माँ ने आज उसके हाथ पर पूरी गोल रोटी और गुड का टुकड़ा रखा तो गोलू की आँखें आश्चर्य से फैल गईं। पलटकर आसमान की ओर देखा। पूनम का गोल चाँद चमक रहा था। दोनों की नज़रें मिलीं और एक मीठी सी मुस्कान हवा में घुल गई।

.

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 856

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 21, 2017 at 9:29pm

अद्भुत कथा | दो पंक्तियों में कितनी गहरी बात कह दी आपने आदरणीया कल्पना जी | हार्दिक बधाई आपको |

Comment by कल्पना रामानी on July 7, 2014 at 10:21pm

आपको लघुकथा पसंद आई,  लिखना सार्थक हुआ,  आदरणीय सौरभ जी , हार्दिक धन्यवाद आपका


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 7, 2014 at 3:18am

उसे मालूम था, चाँद और रोटी या रोटी और चाँद विवश पलों में पर्यायवाची हो जाते हैं. तभी तो रोटी हाथ में ले चाँद को देख कर वो यों मुस्कुराया था. यह होती है कल्पनाशीलता ! उपमा पुरानी, परन्तु, असर उतना ही गहन.  

आपकी इस लघुकथा ने खूब प्रभावित किया, आदरणीया कल्पनाजी. हृदय से बधाई स्वीकारें.

Comment by कल्पना रामानी on July 5, 2014 at 9:03am

प्रिय प्राची जी, रचना को आपकी प्रशंसा मिलना ही मेरे लिए पुरस्कार जैसा है। आपका हार्दिक धन्यवाद

Comment by कल्पना रामानी on July 5, 2014 at 9:02am

आदरणीय रवि प्रभाकर जी, यह मेरी वेब की दुनिया के  तीन वर्षों में पहली छंदमुक्त रचना है। आपको इतनी पसंद आई यह तो मेरा सौभाग्य है। हाँ ऐसी रचनाएँ कभी कभी ही जन्म लेती हैं। आप सबके प्रोत्साहन से बहुत उत्साहित हूँ, आगे भी प्रयास होता रहेगा। आपका बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by कल्पना रामानी on July 5, 2014 at 8:57am

आदरणीय आशुतोष मिश्रा जी, लघुकथा की सराहना  के लिए बहुत बहुत धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 3, 2014 at 3:43pm

बहुत ही संवेदनशील और महीन लेखन आदरणीया कल्पना जी 

पूरी गोल रोटी और पूनम का चाँद क्या खूब शब्दचित्र उकेरा है 

बहुत बहुत बधाई 

Comment by Ravi Prabhakar on June 28, 2014 at 10:07am

आदरणीय कल्पना जी,
    नमस्कार । आपकी प्रस्तुत लघुकथा तीन रोज पहले पढ़ी थी। तब से अब तक इसके सरूर में डूबा हुआ हूँ। अद्वितीय प्रस्तुति ! दो लाइनों में आपने वो बात कह दी जिसे कहने के लिए पूरा उपन्यास लिखना पड़े। इतना गहन और सूक्षम लेखन ! सुभान अल्लाह ! मुझे आदरणीय श्री योगराज जी की दो पंक्तिया याद आती है: “मेरे बच्चों को खाना मिल गया, मुझे सारा जमाना मिल गया।” जब कभी भी ओबीओ पर पहली तीन लघुकथायों का चयन किया जाएगा यकीनन यह लघुकथा उनमें से एक होगी। मैं तो आपका फैन हो गया हूँ। यह आपकी पहली लघुकथा है यकीन तो नहीं होता, ऐसी लघुकथा कोई पहली बार में तो नहीं लिख सकता या यूं भी कह सकते हैं कि ऐसी लघुकथा पहली बार में सिर्फ कल्पना जी ही लिख सकती हैं। आपकी धारदार लेखनी को कोटि-कोटि नमन। निवेदन है कि आप भविष्य में भी लघुकथाएं अवश्य लिखें। धन्यवाद

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 27, 2014 at 1:15pm

आदरणीया कल्पना जी ..इस अतिसूक्ष्म रचना का कोई जवाब नहीं ..आपके इस उनर से परिचित होने का सुअवसर पहली बार मिला ..स्मृति पटल पर अंकित इस शानदार रचना के लिए पुनः बधाई के साथ सादर

Comment by कल्पना रामानी on June 27, 2014 at 8:40am

आदरणीय योगराज जी, आपको लघुकथा पसंद आई, मन को अपार  बल मिला। आपका सादर धन्यवाद

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
1 minute ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय सौरभ सर ओ बी ओ का मेल वाकई में नहीं देखा माफ़ी चाहता हूँ आदरणीय नीलेश जी, आ. गिरिराज जी ,आ.…"
4 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम -. . . . . शाश्वत सत्य
"आदरणीय  अशोक रक्ताले जी सृजन आपकी प्रेरक प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ ।  इंगित बिन्दुओं पर…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"ओबीओ का मेल चेक करें "
7 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय सौरभ सर सादर नमन....दोष तो दोष है उसे स्वीकारने और सुधारने में कोई संकोच नहीं है।  माफ़ी…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"भाई बृजेश जी, आपको ओबीओ के मेल के जरिये इस व्याकरण सम्बन्धी दोष के प्रति अगाह किया था. लेकिन ऐसा…"
7 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय धामी जी स्नेहिल सलाह के लिए आपका अभिनन्दन और आभार....आपकी सलाह को ध्यान में रखते हुए…"
9 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय गिरिराज जी उत्साहवर्धन के लिए आपका बहुत-बहुत आभार और नमन करता हूँ...आपसे आदरणीय नीलेश…"
9 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय नीलेश जी सर्व प्रथम रचना पटल पे उपस्थिति के लिए आपका हार्दिक आभार....वैसे ये…"
9 hours ago
Admin posted discussions
20 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ सड़सठवाँ आयोजन है।.…See More
21 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम -. . . . . शाश्वत सत्य
" आदरणीय सुशील सरना जी सादर, जीवन के सत्य पर सुन्दर दोहावली रची है आपने. हार्दिक बधाई…"
22 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service