फौलाद भी
चोट से आकार बदल लेते हैं
या टूट जाते हैं
फिर इंसान की क्या बिसात
कब तक सहेगा चोट
आखिर टूटना पड़ेगा
इंसान ही तो है
मगर
टूटकर भी कायम रहेगा
या बिखर जायेगा
ये इंसान की प्रकृति तय करेगी
हालात बदलने को तैयार है
पुरानी सड़क पर
डामर की नई परत बिछेंगी
खण्डरों का जीर्णोद्धार होगा
पुरानी इमारत के मलबे पड़े हैं
कुछ मलबे काम आयेंगे
कुछ मलबे मिटाये जायेंगे
ये इंसान भी
एक रोज़ मलबे की तरह पड़ा होगा
भंगार अनुपयोगी है
मगर भंगार की भी कीमत है
कुछ भंगार हैं
पानी की खाली बोतल की तरह
जिसकी कोई कीमत नही
खाली तो खत्म
मेरे दिल ने मुझसे पूछा
भंगार तुम्हे भी होना है
ये कहो
टूटकर भी काम आओगे
या टूटकर सड़ोगे?
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय गणेशजी रचना की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार
कीमत तो खाली पानी की बोतल की भी है, बहरहाल अच्छी कविता हुई है, बहुत बहुत बधाई।
आदरणीया वंदना जी आपका हार्दिक आभार
आदरणीय शिज्जू जी चिन्तन के लिए प्रेरित करती हुई प्रभावशाली रचना बनी है।
आपको बहुत बधाई।
सादर
आदरणीया डॉ प्राची जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया
मानव जीवन की उपयोगिता के प्रति सार्थक चिंतन को शब्दबद्ध करती इस रचना पर हार्दिक बधाई आ० शिज्जू शकूर जी
आदरणीय सौऱभ सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया
अच्छी कविता के लिए बधाई भाईजी
शुभ-शुभ
आदरणीय बृजेशजी आपका हार्दिक आभार
अच्छे कविता है! आपको बधाई!
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