जीवन के अनजाने पथ पर , मोड़ अनेको आते हैं | |
पथिक अकेला चलता रहता , मिल लोग बिछड़ जाते हैं | |
कुछ तो मिलकर मन बहलाते , कुछ मौन चले जाते हैं | |
कोई दे सर्द हवा झोंका , कोई ग़म दे जाते हैं | |
पर कही मिले कोई नैया , जीवन पार लगा जाती | |
गर विरान मरुस्थल में रहे , नई हरीयाली लाती | |
अलग खुशी भरती जीवन में, फूलों से घर महकाती | |
हँसी खुशी से साथ निभाये , घर घर घरनी कहलाती | |
विवेक होता नर नारी में , मन रमा गाड़ी चलाते | |
मानव दानव में अंतर क्या , जो घर बसा बिछड़ जाते | |
दोनों हाथ मिल बजे ताली , जुदा शोर ना कर पाते | |
जीवन में ग़म भर जाता है , जुदा राह जब अपनाते | |
पर नर नारी के मिलन बिना , जीवन पुष्प अधूरा है | |
तनहा रहकर जो खुशी मिले , जोड़ी बिना अधूरा है | |
जाना है एक दिन जहाँ से , होत समय जब पूरा है | |
वर्मा फिर ना आने वाला , ठोकर लगा जो गिरा है | |
श्याम नारायण वर्मा |
(मौलिक व अप्रकाशित) |
Comment
बहुत सुन्दर रचना .. हार्दिक बधाई | सादर
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