हर पतझड़ को ……
ज़िंदगी को ..हर मौसम की जरूरत होती है
उजालों को भी ...अंधेरों की जरूरत होती है
क्यों सिमटे नहीं सिमटते वो बेदर्द से लम्हे
चश्मे अश्क को .खल्वत की ज़रुरत होती है
रात के वाद-ऐ-फ़र्दा पे ..यकीं भला करूँ कैसे
यकीं को भी इक समर्पण की जरूरत होती है
मिट गयी सहर होते ही वो रूदाद-ऐ-मुहब्बत
रूहे- मुहब्बत को आगोश की जरूरत होती है
हिज़्र की सिसकियों से है नम रात का दामन
सोहबते -लब को तिश्नगी की जरूरत होती है
कुछ जल जाएंगे कुछ ...अध जले रह जाएंगे
जुगनू से ख्वाब को ..रात की जरूरत होती है
कितने ही राज़ दफन हैं .इक रात के सीने में
हर पतझड़ को .इक बहार की जरूरत होती है
सुशील सरना
Comment
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी रचना पर आपकी आत्मीय अभिव्यक्ति का हार्दिक आभार। नेट व्यवधान के कारण आभार व्यक्त करने में विलम्ब के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।
आदरणीय सुरेन्दर कुमार शुक्ल जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार। नेट व्यवधान के कारण आभार व्यक्त करने में विलम्ब के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।
आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद लाड़ीवाला जी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार। नेट व्यवधान के कारण आभार व्यक्त करने में विलम्ब के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।
कितने ही राज़ दफन हैं .इक रात के सीने में
हर पतझड़ को .इक बहार की जरूरत होती है
सुन्दर भाव ...अच्छी रचना ....कुछ शब्द समझ में कम आये काश उनके अर्थ नीचे लिख दिए जाएँ ...
भ्रमर ५
आदरणीय सुशील भाई , सुन्दर भाव अभिव्यक्ति हुई है , सुन्दर रचना के लिये आपको बधाई ॥
सुन्दर और उम्दा भाव रचना के लिए बहुत बहुत बधाई
कितने ही राज़ दफन हैं .इक रात के सीने में
हर पतझड़ को .इक बहार की जरूरत होती है---- वाह ! यथार्थ भाव
आदरणीय जितेन्द्न गीत जी रचना पर आपके स्नेह का हार्दिक आभार
आदरणीय विजय निकोरे जी रचना पर आपके स्नेह का हार्दिक आभार
ज़िंदगी को ..हर मौसम की जरूरत होती है
उजालों को भी ...अंधेरों की जरूरत होती है.............वाह! बहुत ही सुंदर, बधाई आदरणीय शुशील जी
बहुत सुन्दर रचना। बधाई, आदरणीय।
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